09 November, 2021

वे बच्चे | कविता | डॉ शरद सिंह

वे बच्चे
       - डॉ शरद सिंह

वे जो नन्हें बच्चे
नहीं जानते थे दुनिया
नहीं जानते थे
आग की तपिश
नहीं जानते थे
जीने की मशक्क़त
नहीं जानते थे
कि वे क्यों हैं
अस्पताल में
अब कभी 
जान भी नहीं सकेंगे
ज़िंदगी को
जिसे बचाने
भर्ती किए गए थे वे

वे रहते
तो धीरे-धीरे चढ़ते
उम्र की सीढ़ियां
जाते किसी
सरकारी स्कूल में
कुछ निकलते पढ़ाकू
कुछ पंक्चर जोड़ने वाले
और बनते
अपने परिवार के सहारे

अब 
उनकी किलकारियां
कभी नहीं
सुन पाएंगी मांंएं
नहीं सिखा पाएंगे
उंगली पकड़ कर चलना
उनके पिता

पछताते रहेंगे सिर्फ़
भर्ती करने पर
गोया 
अस्पताल हमीदिया का 
एसएनसीयू वार्ड नहीं
जीवित (शव×) दाहगृह हो
या लापरवाहियों का
अक्ष्म्य, घातक उदाहरण
या फिर
शाम तक 
बासी हो जाने ख़बर।
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