20 October, 2021

शरद का चांद | कविता | डॉ शरद सिंह

शरद का चांद
          - डॉ शरद सिंह
शरद पूनम का चांद 
पूरा है
पर
भीतर से
अधूरा है

या फिर
मेरी उदास आंखें
छलछला उठी
उसे देखते ही
और 
दिखने लगा
चांद भी उदास

यादों के धब्बे
कैसे धोएगा चांद
मुझे पता नहीं
और कब तक
रोएगा चांद
मुझे पता नहीं

पता है तो
सिर्फ़ इतना कि
उदासी शीत
उतरा करेगी आंगन में
और
दूब की नोंक पर
दिखेंगे रात के आंसू
बड़े भोर से

शुक्लपक्षी बन कर
उड़े आकाश में
या छिप जाए
कृष्णपक्षी बन कर
चांद उदास रहेगा
ऋतु शरद उदास रहेगी
उदास रहेगी रात
व्यस्तता भरा दिन लिए
सूर्य के आने तक
      -----------
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10 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२१-१०-२०२१) को
    'गिलहरी का पुल'(चर्चा अंक-४२२४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. संस्पर्शी कथनानुभाव !

    -सांसों के चलने तक उदास ये चांद रहेगा ; ऋतुश्री भी !

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. बहुत ही भावपूर्ण रचना

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  6. बहुत ही सुन्दर

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  7. भावपूर्ण रचना
    भीतर से अधूरा है

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  8. समय ही यादों के बड़े से बड़े घाव को भर सकता है

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  9. शरद का चाँद अपने सुधारस से शायद भर भी दे घाव ...ऊपर से ही सही..
    बहुत भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।

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