28 October, 2021

क़िस्से | कविता | डॉ शरद सिंह

क़िस्से
        - डॉ शरद सिंह
बंद कमरों में 
लेते हैं जन्म 
क़िस्से कई बार
और रह जाते हैं 
बंद कमरों में ही

नहीं कोई चर्चा करता
दीवारों के उस पार उनकी
नहीं जान पाता पीड़ा
दीवारों के पार उनकी
वे सोए रहते हैं
खोए रहते हैं 
दबे रहते हैं
बंद कमरों में ही

क्योंकि वे क़िस्से
होते हैं स्त्री-जीवन की
त्रासदी के
शोषण के, उत्पीड़न के
घरेलू हिंसा के
ये हैं वे क़िस्से 
जो कभी
लांघ नहीं पाते हैं
घर की चौखट
दरवाज़ा खुला रहने पर भी।
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3 comments:

  1. सशक्त यथार्थांकन !

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  2. मार्मिक और कड़वा सत्य

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  3. समाज का कटु सत्य !
    जाति-भेद से भी अधिक लिंग-भेद ने भारत को पतन के गर्त में ढकेला है.
    लेकिन आज भारतीय नारी को घुट-घुट कर जीने के स्थान पर अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का प्रतिकार करना होगा.

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