सयानी लड़की
- डॉ शरद सिंह
वह लड़की
अपने हड़ीले
कमज़ोर दिखने वाले
बाएं कांधे पर
लाद कर
प्लास्टिक की बोरी
घूमती है
एक छोकरे के साथ
जो यक़ीनन भाई है उसका
वह बीनती है
भाई के साथ
दारू के खाली पाऊच
और डिस्पोज़ल गिलास
दारू की दूकान के सामने
अलसुबह से,
जब लोग
दौड़ रहे होते हैं
अपनी सेहत बनाने
चिरकुट फ्राक वाली
वह आठ सालाना लड़की
जानती है कि
उन पाऊच और गिलासों में
वे भी होंगे
जिन्हें इस्तेमाल किया होगा
कल देर शाम गए
उसके पियक्कड़ बाप ने
हर दिन वह
बीनती है पाऊच और गिलास
बदले में हर दिन
कबाड़ी से पाती है
बीस रुपए
हथिया लेता है उसमें से
पांच रुपए भाई
दस रुपए बाप
और बचे पांच
वह रख देती है
अपनी कुटी-पिटी मां की
सख़्त हथेली पर
स्वेच्छा से
और खुश हो जाती है
पुंगी पा कर बासी रोटी की
है न लड़की सयानी?
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उद्वेलक सत्यांकन। साधु-साधु !
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