24 September, 2021

तनहाई | ग़ज़ल | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

  ग़ज़ल
           तनहाई है
          - डॉ शरद सिंह
चौतरफा   सन्नाटा है,    तनहाई है 
देखो, क़िस्मत कहां मुझे ले आई है 

दीवारों से बातें करना कठिन हुआ
मेरे  दुखड़े  से  छत  भी   घबराई है 

हरपल आंखों में आंसू भर आते हैं
बेबस दिल  की ये कैसी भरपाई है

जिसने, जिसने मुंहफेरा है जाने दो
नाम लिया तो उनकी ही रुसवाई है

अरमानों के नेज़े  आंधी  से  चलते
जिस्म को चुभने वाली हर पुरवाई है

झूठे हर्फ़ों  की  इतनी  भरमार हुई
स्याही भी काग़ज़ से अब शरमाई है

"शरद" हौसले की पतवारें साबुत हैं
कश्ती   भर   चट्टानों  से  टकराई है
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