मेरी कविता "दूर, बहुत दूर" का पंजाबी अनुवाद "प्रतिमान" जुलाई-सितंबर 2021अंक में प्रकाशित हुआ है जिसके लिए मैं पंजाबी एवं हिन्दी के चर्चित साहित्यकार डॉ अमरजीत कौंके की अत्यंत आभारी हूं🙏
हिन्दी भाषी मित्रो के लिए अपनी मूल हिन्दी कविता भी यहां दे रही हूं-
दूर, बहुत दूर
- डॉ शरद सिंह
घर की क़ैद से निकल कर
दूर, बहुत दूर निकल जाने की इच्छा
बलवती होने लगी है
इन दिनों
अख़बारों की
कराहती सुर्खियों से दूर
मृतक आंकड़ों की
चींखों से दूर
सांत्वना के निरंतर
दोहराए जाने वाले
बर्फीले शब्दों से दूर
अस्पताल परिसर की
यादों से दूर
बंद ग्रिल के पीछे
कोविड वार्ड के
ख़ौफ़नाक अहसास से दूर
आधी रात के बाद
फ़ोन पर आई
उस हृदयाघाती सूचना से दूर
शासन तंत्र की
ख़ामियों से दूर
घोषणाओं की
झूठी उम्मींदों से दूर
जनता की
आत्मकेन्द्रियता से दूर
प्रजातंत्र के राजा की
नींदों से दूर
कहीं दूर...
बहुत दूर
जहां सागौन का हो जंगल
संकरी पगडंडी
एक पतली नदी
एक झरना
एक कुण्ड
देवता विहीन
प्राचीन मंदिरों के अवशेष
बंदरों की हूप
और पक्षियों की आवाज़ें
वहां
जहां मैं प्रकृति में रहूं
और प्रकृति मुझमें
न कोई बनावट
न धोखा, न छल
न पंजा, न कमल
ले सकूं खुल कर सांस
प्रदूषण रहित हवा में
न ढूंढना पड़े जीवन
वैक्सीन या दवा में
शायद तब मैं
जी लूंगी
एक बार फिर
जी भर कर।
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