Mere Khwabon Ke Shahar Ka ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
मेरे ख़्वाबों के शहर का जो है पता तुझको
ज़रा बता भी दे अब उसका रास्ता मुझको
तू भी मिल-मिल के जमाने से आजमाता है
चाहता है जो सताना, तो फिर सता मुझको
तू नज़ूमी की तरह बांचता रहता है मुझे
मेरी तक़दीर में लिक्खा है क्या, बता मुझको
क्यूं लरज़ता है, झिझकता है, सहमता है भला
इश्क़ तुझको जो है मुझसे, तो ये जता मुझको
बंद बक्से में रखे ख़त की तरह क्या जीना
कर दे इक बार तो खुल के भी कुछ अता मुझको
- डॉ ( सुश्री ) शरद सिंह
बहुत बढ़िया,
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Deleteहार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी !!!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (6-04-2019) को " नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं " (चर्चा अंक-3297) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अनीता सैनी
प्रिय अनीता सैनी जी,
Deleteमेरी ग़ज़ल को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार !!!
बहुत खूब
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Deleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी !!!