16 April, 2023

कविता | बेचारा प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सदीनामा

अचानक "सदीनामा" में अपनी कविता "बेचारा प्रेम" देखकर चकित रह गई और अत्यंत सुखद अनुभूति हुई...
   आपकी हार्दिक आभारी हूं मेरी कविता का स्वतः चयन करने के लिए भारत दोसी जी 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏🌹🙏
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मित्रो, आपकी पठन सुविधा के लिए कविता का टेक्स्ट भी यहां दे रही हूं...

बेचारा प्रेम
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कल रात
मैंने सपने में देखा
बौखलाया
झुंझलाया
दिग्भ्रमित प्रेम

हर पल 
बदल रहा था
उसका रूप-
कभी टूटा पत्ता
तो कभी 
बिना हैण्डल का मग
कभी तुड़ामुड़ा काग़ज़
तो कभी
उखड़ी कॉलबेल
कभी गिड़गिड़ाता भिखारी
तो कभी
रुदन करती रूदाली

उसे व्यथित देख
पूछा -
दुख क्या है तुम्हें?

वह बोला-
छल करते हैं लोग
मेरा मुखौटा लगाकर
मुझे रहने नहीं देते 
मेरी मनचाही जगह,
मैं चाहता हूं रहना
सीरियाई, तंजानिया 
और बुरुंडी के 
शरणार्थी शिविरों में,
मैं चाहता हूं रहना
धारावी की स्लम बस्ती
और 
सोनागाछी के तंग कमरों में,
मैं चाहता हूं रहना
उन हथेलियों में
जिनमें नहीं है भाग्यरेखा
उन पन्नों में 
जिन पर नहीं लिखा गया
मेरे नाम का पत्र
उन आंखों में
जो देखना चाहती हैं मुझे
उन सांसों में
जो संचालित होना चाहती हैं
मुझसे.....

वह देर तक बोलता रहा
मैं देर तक सुनती रही
फिर रोते रहे 
गले लग कर 
हम दोनों
नींद खुलने तक

बेचारा प्रेम
नहीं है वहां
जहां चाहता है होना,
ठीक मेरी तरह।
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10 April, 2023

ग़ज़ल | इक पहेली - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल 
इक पहेली 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शाम को  बारिश हुई और थम गई
रात है  कि  भीगती  ही  जा रही है
हर कद़म पर इक पहेली बन गई
ज़िन्दगी  यूं  बीतती ही जा रही है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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04 April, 2023

कविता | अनुगूंज - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
अनुगूंज 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उदासी की बूंदें
टपक रही
टप-टप
मन की 
रिक्त बाल्टी में...
बूंदें छोटी 
पर 
अनुगूंज बहुत बड़ी...
कब भरेगी बाल्टी
कब थमेगी ध्वनि
पता नहीं
जीवन के दिवस में
रात का साया
कुछ ज़्यादा ही 
गहराया...
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11 March, 2023

कविता | सफ़ेद गुलाब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सफ़ेद गुलाब
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तुमसे बहुत बातें करती हूं मैं
लगभग रोज़ ही
फोन पर... 
नहीं!
मिल कर... 
नहीं !
फिर?
नेट, चैट...
नहीं!
फिर?
.......
फिर....!
मैंने ये तो नहीं कहा
कि तुमने भी
मुझसे बातें की हैं!

तुम्हारी तुम जानो
मैं तो
ख़ुश हूं
तुम्हारे साथ
अपनी प्लेटोनिक दुनिया में,
किसी दरवेश की तरह...
और 
स्याही लगे मेरे हाथों में है
एक सफ़ेद गुलाब।
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10 March, 2023

कविता | सलवटों वाले दिन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सलवटों वाले दिन 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मसल कर फेंके गए 
काग़ज़ की तरह 
तुड़े-मुड़े 
सलवटों वाले दिन 
नहीं होते 
किसी भी तरह सीधे 
कर लो चाहे 
जितने जतन।
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03 March, 2023

कविता | ख़ामोशी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | ख़ामोशी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ज़िंदगी बेजुबान होती है
लफ़्ज़ और आवाज़
तो उसे हम देते हैं
और फिर ढूंढते हैं 
एक ख़ामोशी।
      - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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01 March, 2023

ग़ज़ल | सोचा ना था | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल  
सोचा ना था 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

इश्क़ का धोखा सिर माथे पे ले कर जीते रहे हमेशा 
मौत भी धोखा दे जायेगी ये तो हमने सोचा ना था 

तनहाई पे नॉवेल लिक्खा, हिज़्र पे भी दीवान लिखा 
जफ़ा* डायरी लिखवाएगी, ये तो हमने सोचा ना था
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*जफ़ा = अन्याय, Injustice
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