ग़ज़ल
सोचा ना था
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
इश्क़ का धोखा सिर माथे पे ले कर जीते रहे हमेशा
मौत भी धोखा दे जायेगी ये तो हमने सोचा ना था
तनहाई पे नॉवेल लिक्खा, हिज़्र पे भी दीवान लिखा
जफ़ा* डायरी लिखवाएगी, ये तो हमने सोचा ना था
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*जफ़ा = अन्याय, Injustice
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सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीया मैम, आपके ब्लॉग पर अनेकों बार आयी हुई हूँ और आपकी कई रचनाएँ पढ़ी हैं। अभी बहुत सुंदर और भावपूर्ण होती हैं। आपकी यह ग़ज़ल भी बहुत ही सुंदर और मन को झकझोरने वाली है। अन्याय वव्यक्ति को सबसे अधिक दुख देता है और शूल की तरह चुभता रहता है, आज देश और समाज में बढ़ते अन्याय के विरोध में आपकी यह रचना बहुत ही सशक्त है। आभार व आपको मेरा सादर प्रणाम। आप से निवेदन है कि यदि हो सके तो एक बार कराए ब्लॉग पर आकर भी अपना आशीष दीजिये।
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