ग़ज़ल
इक पहेली
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
शाम को बारिश हुई और थम गई
रात है कि भीगती ही जा रही है
हर कद़म पर इक पहेली बन गई
ज़िन्दगी यूं बीतती ही जा रही है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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