शायरी
मेरे ख़्वाब की किरचें, मेरी आंखों में चुभती रहती हैं।
अश्क़ों की ख़ामोश लकीरें, भीतर ही भीतर बहती हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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