आई शपथ !
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
यादों के साथ जीना
और सीने पर
दुनियादारी का
पत्थर रख कर
आंसुओं को पीना
आसान नहीं है, मित्र!
अपने कमज़ोर कंधे पर
ख़ुद को
जीते जी ढोना
आसान नहीं है, मित्र !
आसान नहीं कुछ भी
फिर भी
जीना है, सांस लेना है
क्योंकि मेरी मां ने
मुझे नहीं सिखाया पलायन
या हार मानना
अभिमन्यु की तरह
जी लूंगी,
विपदाओं से घिर कर भी
पर हार नहीं मानूंगी, मित्र !
सच कहती हूं....
*आई शपथ !
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*आई (मराठी) = मां
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बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteमाँ की सीख का मान तो रखना होगा
ReplyDeleteहर हाल में जीना है जिंदादिली से...
लाजवाब सृजन