ग़ज़ल
अश्क़ अपने
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
क्या बताएं, किस तरह, कैसे जिए हैं?
टिमटिमाती लौ लिए बुझते दिए हैं।
अब न रोएंगे, किया वादा है ख़ुद से
अश्क़ अपने बेदख़ल सब कर दिए हैं।
वक़्त ने जो रंग बदला, लोग बदले
साथ थे जो , आज वो दूजे ठिए हैं।
हम शिक़ायत क्या करें हालात से
लिख दिए हिस्से हमारे मर्सिए हैं।
अब फ़क़ीरी है 'शरद' की ज़िंदगी में
हो भला उसका, दग़ा जिसने किए हैं।
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भावपूर्ण ग़ज़ल
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार १२ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत कोमल भाव और संयत अभिव्यक्ति कौशल प्रभाव छोड़ता है -आभार.
ReplyDeleteव्वाहहहहहह
ReplyDeleteसादर
मार्मिक हृदयोद्गार !
ReplyDeleteआज जो बदले हैं ठीए , कल वो मारे जाएंगे !
काल जो अंगड़ाई लेगा , ठोकरें वो खाएंगे !!