यादों को उसकी भुलाना कठिन है
हथेली पे सरसों उगाना कठिन है
मुद्दत से देखा नहीं है भले ही
ज़ेहन से उसको मिटाना कठिन है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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स्पर्श नहीं , ना दृष्टि उठी , ना अधर हिले , ना मुखमंडल पर भाव खिले ।
ReplyDeleteना हर्ष , विषाद , ना आतुरता , बस........
उसको कैसे भूल जाऊं ,
ReplyDeleteदृग उठे ना जिसके दरस को ।
चोरी-चोरी निहारा उसको ,
निहारा उसकी मुदन , हरष को ।।