20 May, 2022

ग़ज़ल | यादों को उसकी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

यादों को उसकी भुलाना कठिन है
हथेली पे  सरसों  उगाना कठिन है
मुद्दत  से   देखा  नहीं  है  भले ही
ज़ेहन से उसको मिटाना कठिन है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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2 comments:

  1. स्पर्श नहीं , ना दृष्टि उठी , ना अधर हिले , ना मुखमंडल पर भाव खिले ।
    ना हर्ष , विषाद , ना आतुरता , बस........

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  2. उसको कैसे भूल जाऊं ,
    दृग उठे ना जिसके दरस को ।
    चोरी-चोरी निहारा उसको ,
    निहारा उसकी मुदन , हरष को ।।

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