12 May, 2022

कविता | मेरी भावनाएं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
मेरी भावनाएं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

भावनाएं
कभी सुप्त विसूवियस 
तो कभी
अलकनंदा की
कल-कल लहरें

भावनाएं
कभी थिर ध्रुव तारा
तो कभी
उल्काओं की बारिश

भावनाएं
कभी सीधी लकीरें
तो कभी
पिकासो की पेंटिंग्स

भावनाएं
कभी स्टेयरिंग व्हील
तो कभी
घूमते पहियों की रिम

भावनाएं
कभी हथेली की मेंहदी
तो कभी
मुट्ठी से फिसलती रेत

भावनाएं
कभी गोपन अंतःध्वनि
तो कभी
कलरव, कल्लोल

भावनाएं
कभी जादुई छुअन
तो कभी
कटीले तारों की बाड़

भावनाएं 
कभी कविता के शब्द 
तो कभी 
उपन्यास के कथानक

भावनाएं 
चलती हैं अपनी मनमर्जी से 
किसी हुक्मरान के 
हुक्म से नहीं

ये मेरी भावनाएं हैं 
जो बनकर लाल रक्त कणिकाएं
मुझे देती है स्पंदन 
मैं उन्हें नहीं,

वे यांत्रिक नहीं 
वे हैं खांटी प्राकृतिक 
क्योंकि
भावनाएं
बिजली का स्विच नहीं
कि कभी भी
किया जा सके
ऑन या ऑफ 
एक उंगली के इशारे से।
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#भावनाएं #यांत्रिक #ध्रुवतारा #उल्का  #मेहंदी #रेत #प्राकृतिक #स्पंदन

1 comment:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१३-०५-२०२२ ) को
    'भावनाएं'(चर्चा अंक-४४२९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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