09 May, 2022

कविता | बहुत छोटा है प्रेम शब्द | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

साहित्यिक सरोकारों वाली वेब मैगजीन "युवा प्रवर्तक" में आज मेरी कविता प्रकाशित हुई है इसका शीर्षक है -"बहुत छोटा है प्रेम शब्द"।
इस लिंक्स पढ़िए -
https://yuvapravartak.com/63091/
तथा युवा प्रवर्तक के फेसबुक पर भी -
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=553367486425237&id=108584627570194

कविता
बहुत छोटा है प्रेम शब्द
 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

काश!
वह सड़क लम्बी हो जाए
टूर से
घर लौटने वाली,
तुम्हारी यात्रा
बढ़ जाए
एक घंटे और 
दो घंटे और 
तीन घंटे और 
चार घंटे और 
और ..और ..और..
चाहता है स्वार्थी मन 
बस इतना ही
कि तुम अनवरत चलते रहो 
और 
बातें करते रहो मुझसे
मन की 
दुनिया की 
ब्रह्मांड की
समता की
विषमता की
वर्तमान की
अतीत की
आशा की
निराशा की
बातें ही तो हैं 
जो जोड़े रखती हैं 
परस्पर हम दोनों को 
एक-दूसरे से 
वरना इस दुनियावी चक्र में 
मैं पृथ्वी हूं 
तो तुम सुदूर प्लूटो 
कोई नहीं साम्य नहीं 
कोई नहीं मेल 
कोई नहीं अपेक्षा  
कोई नहीं संभावना 
कोई नहीं वादा
कोई नहीं इरादा
बस दो ग्रहों की भांति 
एक आकाशगंगा में 
विचरते हुए हम 
बातें ही तो करते हैं 
अपने एंड्राइड फ़ोन में
परअंतरक्षीय तरंगें उतारकर
मिटा लेते हैं
हज़ारों प्रकाशवर्ष की दूरी
जो कोई ग़ुनाह नहीं 
इसीलिए 
चाहती हूं तुम्हारी यात्रा 
हर दफ़ा सड़क की लंबाई को 
ज़रा और बढ़ाती जाए 
और हम अपनी धुरी में घूमते हुए 
एक-दूसरे के अस्तित्व को महसूस कर 
होते रहें ऊर्जावान
अपने अलौकिक अहसास के साथ
बहुत छोटा है प्रेम शब्द 
जिसके आगे।
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4 comments:

  1. सच कहा आपने आभासी दुनिया में एक लम्बी सड़क आपस की दूरियां कुछ तो कम कर ही सकती हैं
    बहुत अच्छी प्रेरक रचना

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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