15 January, 2022

ग़ज़ल | जाड़े वाली रात | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Jade Waali Raat, Ghazal, Dr (Ms) Sharad Singh


ग़ज़ल

जाड़े वाली रात

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


सूनी-सूनी डगर हमेशा, जाड़े वाली रात

बर्फ़ जमाती नहर हमेशा, जाड़े वाली रात


चंदा ढूंढे कंबल-पल्ली, तारे ढूंढे शॉल

हीटर तापे शहर हमेशा,जाड़े वाली रात


पन्नीवाली झुग्गी कांपे, कांप रहा फुटपाथ

बरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात


जिसके सिर पर छत न होवे और न कोई शेड

लगती उसको ज़हर हमेशा, जाड़े वाली रात


छोटी बहरों वाली ग़ज़लों जैसे छोटे दिन

लगती लम्बी बहर हमेशा,जाड़े वाली रात

               -------------------

#ग़ज़ल #जाड़े_वाली_रात #डॉसुश्रीशरदसिंह

 

4 comments:

  1. छोटी बहरों वाली ग़ज़लों जैसे छोटे दिन
    लगती लम्बी बहर हमेशा,जाड़े वाली रात
    अति सुन्दर ।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना
    बरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात

    ReplyDelete
  3. पन्नीवाली झुग्गी कांपे, कांप रहा फुटपाथ

    बरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात... मार्मिक सृजन।
    सादर

    ReplyDelete