06 जनवरी अर्थात् युद्ध अनाथों का विश्व दिवस पर...
कविता
टोहता है गिद्ध
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
लिप्सा से जन्मा युद्ध
नहीं दे सकता
रोटी, पानी और घर।
एक उजाड़ संसार का देवता है युद्ध
ध्वस्त गांवों, कस्बों, शहरों
में अट्टहास करता
रक्त के फव्वारों में नहाता
मांओं की लोरियों को रौंदता
बच्चों की किलकारियों को डंसता
अल्हड़ लड़कियों की उन्मुक्त खिलखिलाहट को
चीत्कारों में बदलता
लोककथाओं के राक्षसों से भी
अधिक भयानक
युद्ध
एक गिद्ध है
जो टोहता है विभिषिका को
लाशों को
और बच रहे उन अनाथों को
जो कहलाते हैं शरणार्थी।
इसी धरती के वासी
इसी धरती पर बेघर
युद्ध नहीं चाहती मां
युद्ध नहीं चाहता पिता
युद्ध नहीं चाहते नाना-नानी
युद्ध नहीं चाहते दादा-दादी
युद्ध नहीं चाहते बच्चे
फिर कौन चाहता है युद्ध?
वे जिन्हें नहीं होना पड़ता अनाथ
न बनना पड़ता है शरणार्थी
और न नहाना पड़ता है रक्त से
एक अदद निवाले,
एक सांस या
एक स्वप्न के लिए।
युद्ध एक आकांक्षा है
कपट राजनीतिज्ञों के लिए
युद्ध एक उन्माद है
शक्तिसम्पन्नता के लिए
जबकि
युद्ध एक स्याह अध्याय है
इंसानियत के लिए
युद्ध दुःस्वप्न है
अनाथ शरणार्थियों के लिए।
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
रवीन्द्र सिंह यादव जी, मेरी कविता को "पांच लिंको के आनंद" में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🌷🙏🌷
Deleteअप्रतिम रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला सिंह जी 🌷🙏🌷
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आकिब जावेद जी 🌷🙏🌷
Deleteबहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कविता रावत जी 🌷🙏🌷
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद भारती दास जी 🌷🙏🌷
Deleteविरल एवं यथार्थ अभिव्यंजन !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विक्रांत सिंह जी 🌷🙏🌷
Deleteउत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन और एक जरूरी कविता
सारगर्भित एक अच्छी कविता ।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteहृदय को झकझोरती मर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteसुंदर सारगर्भित।
सस्नेह।