Jade Waali Raat, Ghazal, Dr (Ms) Sharad Singh |
ग़ज़ल
जाड़े वाली रात
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
सूनी-सूनी डगर हमेशा, जाड़े वाली रात
बर्फ़ जमाती नहर हमेशा, जाड़े वाली रात
चंदा ढूंढे कंबल-पल्ली, तारे ढूंढे शॉल
हीटर तापे शहर हमेशा,जाड़े वाली रात
पन्नीवाली झुग्गी कांपे, कांप रहा फुटपाथ
बरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात
जिसके सिर पर छत न होवे और न कोई शेड
लगती उसको ज़हर हमेशा, जाड़े वाली रात
छोटी बहरों वाली ग़ज़लों जैसे छोटे दिन
लगती लम्बी बहर हमेशा,जाड़े वाली रात
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छोटी बहरों वाली ग़ज़लों जैसे छोटे दिन
ReplyDeleteलगती लम्बी बहर हमेशा,जाड़े वाली रात
अति सुन्दर ।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात
पन्नीवाली झुग्गी कांपे, कांप रहा फुटपाथ
ReplyDeleteबरपाती है क़हर हमेशा जाड़े वाली रात... मार्मिक सृजन।
सादर
बढ़िया !
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