कोशिश करते तो सही
- डॉ. शरद सिंह
तुम रखते मेरी हथेली पर
एक श्वेत पुष्प
और वह बदल जाता
मुट्ठी भर भात में
तुम पहनाते मेरी कलाई में
सिर्फ़ एक चूड़ी
और वह ढल जाती
पानी की गागर में
एक क़दम तुम बढ़ते एक क़दम मैं बढ़ती
दिन और रात की तरह हम मिलते
भावनाओं के क्षितिज पर
तुम रखते मेरे कंधे पर अपनी उंगलियां
और सुरक्षित हो जाती मेरी देह
तुम बोलते मेरे कानों में कोई एक शब्द
और बज उठता अनेक ध्वनियों वाला तार-वाद्य
सच मानो,
मिट जाती आदिम दूरियां
भूख और भोजन की
देह और आवरण की
चाहत और स्वप्न की
बस,
तुम कोशिश करते तो सही।
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नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
हार्दिक आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏🌹🙏
Deleteशुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
ReplyDeleteआपको भी हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं सुशील कुमार जोशी जी 🙏
Deleteबहुत सुंदर रचना आदरणीया
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी 🙏
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरस रचना।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🙏
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteबिलकिल नए4 तरह का प्रयोग और उपमायें, अच्छा लगा पढ़कर।
आभार
सुन्दर
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