मन में विनीत भाव पलने दो श्रद्धा का एक दीप जलने दो
पुलकित है नदी अगर प्रेम से लहरों को जोर तो उछलने दो धरती और आसमान एक हैं शाम ढले क्षितिज पिघलने दो जिनके हैं क़दम डगमगाये एक बार उनको सम्हलने दो ‘शरद’ रात शीतल है भोर तक गर्मी की चर्चाएं चलने दो - डॉ शरद सिंह
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/10/2018 की बुलेटिन, " मार्कीट में नया - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेरी पोस्ट को ब्लॅाग बुलेटिन में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार !!!
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार !!!
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