ख़्वाब तारों से टिमटिमाते हैं
सुबह होते ही टूट जाते हैं
ज़िंदगी दुश्मनों - सी लगती है
क्या कहें, किस तरह निभाते हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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