अब तो
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
दिल के बादल भी
सूख चले
हो गए
पानी से रहित,
अब तो
आंखों में भी
इतने आंसू नहीं
कि बरस कर
बुझा सकें
इस धरती की तपन।
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