28 January, 2024

शायरी | ज़िन्दगी मेरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


मुझे ग़ुलाम समझती है ज़िन्दगी मेरी
इसीलिए तो इशारों पे नचाती है मुझे।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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