रविवार दिनांक 31.05.2020 को प्रगतिशील लेखक संघ मकरोनिया की ऑनलाइन पाक्षिक गोष्ठी काव्य गोष्ठी में मैंने यानी आपकी इस मित्र  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने गजल- "कट रहे हैं दिन सुपारी की तरह, जिंदगी भारी उधारी की तरह। चैन के पल हो गए हैं भूमिगत, एक मुजरिम इश्तिहारी की तरह..." सुनाई, जिसे सभी ने बेहद पसंद किया।
     साथ ही दीदी डॉ. वर्षा सिंह ने- "यादें बाकी रह जाती हैं, वक्त गुजर जाता है। जिसे भूलना चाहो अक्सर, वही नजर आता है। जीवन की यह नदी डूब कर पार इसे करना है, मन में जिसके संशय हो वह नहीं उबर पाता है... " गजल सुनाकर वाहवाही पाई । 
हार्दिक धन्यवाद प्रगतिशील लेखक संघ मकरोनिया 🙏
हार्दिक धन्यवाद दैनिक भास्कर 🙏
#OnLine
#ऑनलाइन_काव्य_गोष्ठी
#दैनिकभास्कर
#प्रलेस
#DrSharadSingh
#miss_sharad
 
   
   
   
No comments:
Post a Comment