Usase Yahi Galati Hui ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh |
उसके घर में आज भी ढिबिया दिखी जलती हुई
हर तरक्क़ी थी गुज़रती दूर से चलती हुई
इस ज़माने की समझ उसको तो जल्दी आ गई
उम्र पाई मुफ़लिसी की बांह में पलती हुई
तंज़ कसता है ज़माना, छोड़ वो जब से गया
ख़्वाब देखा इश्क़ का, उससे यही ग़लती हुई
वह भिखारी था मरा जो रात को फुटपाथ पर
भीड़ गुज़री फिर उधर से आंख को मलती हुई
शाम को आना था, आया ही नहीं वो तो ‘शरद’
हो सके तो दे उसे अब शाम इक ढलती हुई
- डॉ शरद सिंह
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