Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
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मन
बांचता है जब
प्रेम की ऋग्वेदी ऋचाएं
खुल जाते हैं दस मण्डलों से
दस द्वार
या फिर खिलखिला उठती हैं
चौंसठ अध्यायों सी चौंसठ कलाएं
यजुर्वेदी तन होना चाहता है श्रमशील
पर हो नहीं पाता
सामवेदी तरंगे
बन कर राग-रागिनियां फूट पड़ती हैं
एक-एक शिराओं से
सांसारिक कर्मकाण्डों का अथर्ववेद
गढ़ता हो भले ही नई परिभाषा
किन्तु
वैदिक अनुभूतियां नाच उठती हैं पूरे वेग से
और तभी
प्रेम हो जाता है परिष्कृत।
- डॉ. शरद सिंह
#SharadSingh #Poetry #MyPoetry #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
#मेरीकविताए_शरदसिंह
#प्रेम #ऋग्वेदी #ऋचाएं #चौंसठ_कलाएं #यजुर्वेदी #सामवेदी #अथर्ववेद #सांसारिक #कर्मकाण्डों
पर हो नहीं पाता
सामवेदी तरंगे
बन कर राग-रागिनियां फूट पड़ती हैं
एक-एक शिराओं से
सांसारिक कर्मकाण्डों का अथर्ववेद
गढ़ता हो भले ही नई परिभाषा
किन्तु
वैदिक अनुभूतियां नाच उठती हैं पूरे वेग से
और तभी
प्रेम हो जाता है परिष्कृत।
- डॉ. शरद सिंह
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#मेरीकविताए_शरदसिंह
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