शायरी | फिर कहो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
आइना देखो, सम्हल लो, फिर कहो
ख़ुद से तो बाहर निकल लो, फिर कहो
बेअसर लगने लगीं बातें तुम्हारी
झूठ का लहज़ा बदल लो, फिर कहो
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
वाह!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend