17 December, 2022

शायरी | फिर कहो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | फिर कहो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आइना देखो,  सम्हल लो,   फिर कहो 
ख़ुद से तो बाहर निकल लो, फिर कहो 
बेअसर   लगने    लगीं    बातें   तुम्हारी
झूठ का  लहज़ा  बदल लो, फिर कहो 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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4 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  3. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

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