05 February, 2022

कविता | प्रेम और वसंत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
प्रेम और वसंत
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

किसी को
देखते ही
जब
शब्द खो देते हैं
अपनी ध्वनियां 
और
मुस्कुराता है मौन 

ठीक वहीं से 
शुरु होता है

अंतर्मन का कोलाहल
और गूंज उठता है
प्रेम का अनहद नाद
बहने लगती हैं
अनुभूतियों की 
राग-रागिनियां
धमनियों में
रक्त की तरह

भर जाती है
धरती की अंजुरी भी
पीले फूलों के शगुन से
बस, तभी सहसा
खिलखिला उठते हैं 

प्रेम और वसंत
पूरे संवेग से
एक साथ
देह और प्रकृति में।
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