ग़ज़ल | एक तुम्हारे न होने से
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हर वो लम्हा भारी है जो ख़ुद के साथ गुज़रता है
तन्हाई का झोला टांगे, हर इक मौसम फिरता है
किससे दिल की बात कहें और किसको राज़ बतायें
एक तुम्हारे न होने से, जीवन बहुत अखरता है।
दुनिया भी मिल जाये तो क्या, मिट्टी, पत्थर जैसी है
जिसके काटे हाथ गये वो ताजमहल क्या धरता है?
मरने की उम्मीद लगाए, जीते जाना बहुत कठिन है
जीने की इच्छा टूटे तो, जीता है न मरता है।
वर्षा विगत "शरद" ऋतु रोये, आंखें अश्क़ डुबोयें
इसे देख कर समझ सकोगे, कैसे व्यक्ति बिखरता है
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उत्कीर्ण कारुण्य......
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