16 April, 2021

कमज़ोर हूं मैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता

 

Dr ( Miss) Sharad Singh

कमज़ोर हूं मैं

           - डॉ (सुश्री) शरद सिंह 

इन दिनों जांच रही हूं

अपनी भावनाओं को

अनेक मानक हैं मेरे सामने

जो मुझे कराते हैं रूबरू

मेरी कमज़ोरियों से


मेरी मां को "दादी-दादी" कह कर पुचकारतीं

कम उम्र नर्सें

क्या याद रखेंगी उन्हें लम्बे समय तक,

या बेड पर बदलते ही पेशेंट

बदल जाएंगे शब्द और संबोधन


जो मेरे लिए मां हैं, उनके लिए पेशेंट

हर पेशेंट महत्वपूर्ण है उनके लिए

पर मेरे लिए-

मां और सिर्फ़ मेरी मां...


निर्विकार, निर्भाव, निस्पृह

सफ़ेदपोश नर्सों, डॉक्टरों की

जीवट जीवनशैली 

क्या मैं भी जी सकती हूं कभी?

नहीं!!!

कभी नहीं !!!

मैं क्या, कोई भी नहीं

यदि अस्पताल के बेड पर हो मां....

या शायद कोई

पर मैं नहीं,

कमज़ोर हूं मैं


बेहद कमज़ोर...।

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(16.04.2021, 05:45 PM)

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5 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद विक्रांत सिंह जी 🌹🙏🌹

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  2. ऐसा न कहिए शरद जी। आप और वर्षा जी, दोनों ही बहुत दृढ़ व्यक्तित्व की हैं। आपकी मनोभावनाओं एवं पीड़ा को मैं अनुभूत कर रहा हूँ। किंतु आप कमज़ोर नहीं हैं, विश्वास कीजिए।

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  3. शरद जी ,
    हिम्मत रखिये , माँ - पिता के लिए मन में ऐसे ही भाव आते हैं । शीघ्र स्वस्थ हों यही दुआ करते हैं ।
    आप कमज़ोर मत पड़िये ।

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