21 October, 2020

स्त्रीपाठ -3 | स्त्री हो कर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता

स्त्रीपाठ -3
स्त्री हो कर
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वह गुड़िया
वह निर्भया
शब्द मासूम और बहादुर
किसी लॉलीपॉप की तरह

वह तो जूझ रही है हर दिन
घर और बाहर फैले
कामपिपासुओं के जंगल-राज से

उसे दे सकते हो तो दो
एक सुरक्षित समाज
जहां वह ले सके
एक निश्चिंत सांस
स्त्री हो कर।
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