Dr (Miss) Sharad Singh |
तेरी याद की शम्मा
(नज़्म)
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मेरी तनहाई के आले में
तेरी याद की शम्मा
उजाले की कसम ले कर
जली जाती है रातो-दिन
मेरी सांसें भी चलती हैं तो
धीमी..और धीमी सी
कहीं झोंका मेरी सांसों का शम्मा को बुझा न दे
कि जब तक है खड़ी दीवार मेरे जिस्म की, तब तक
ये आला है, ये शम्मा है, ये सांसे हैं, ये यादें हैं
कि उसके बाद तनहाई रहेगी खुद ही तन्हा सी
कि खंडहर टूट जाएगा
कि आला छूट जाएगा
कि शम्मा की बुझी बस्ती
अंधेरा लूट जाएगा.....।
- डॉ. शरद सिंह
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
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