31 August, 2018

सोचता होगा ...... डॉ शरद सिंह

Shayari of Dr Sharad Singh

              सोचता होगा
(मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘परझर में भीग रही लड़की’ से यह मेरी ग़ज़ल) 
                       - डॉ शरद सिंह

सोचता होगा, रखे वह उंगलियों को भाल पर।
छोड़ आए हैं  संदेशा,  काढ़ कर  रूमाल पर।

वह परिधि में  क़ैद अपनी और हम भी क़ैद हैं
व्यर्थ है चर्चा, चहकते  पंछियों  के  हाल पर।

याद की  सीपी उठा कर  आ गई है ज़िन्दगी
तैरती हैं  डोंगियां,  अब झिलमिलाते  ताल पर।

चंद पन्नों की तरह जब कर दिया नत्थी समय ने
क्यों करें महसूस,  सूखी पत्तियों-सा  डाल पर।

दोष मत देना  कभी भी  लड़खड़ाते  भाग्य को
टूटती है अश्व की लय  भी  उखड़ती  नाल पर।

जा चुकी है आयु गुड़िया और  गुड्डा खेलने की
लिख रही हैं   ढेर चिन्ताएं, सफ़ेदी  बाल पर।

क्यों  अंधेरे की निराशा  ओढ़ कर बैठें ‘शरद’?
फिर  उजले  की लकीरें, खींच  डालें भाल पर।

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https://drsharadsingh.blogspot.com/2017/03/patjhar-me-bheeg-rahi-ladki-ghazal-book.html

3 comments:

  1. बहुत खूब....., अति सुन्दर ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सबकुछ बनावटी लगता है “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत सुन्दर यथार्थवादी भाव ! अंतिम छंद में - 'उजले की लकीरें' के स्थान पर - 'उजालें की लकीरें' होता तो बेहतर होता.

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