Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
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जाड़े की
ठिठुराती रात
देखी है
न जाने कितनी
आकृतियां
चाय के प्याले से
उठती भाप में,
जितने ख़याल
उतनी आकृतियां
कभी अच्छी,कभी बुरी
कभी प्यारी
कभी भयावह
जैसी भी हों
रहती हैं मेरे साथ
प्याली के
रीतने से पहले।
मगर रहती हैं
कुछ आकृतियां
संबंधों के
टूटने के बाद भी
चाय के धब्बों की तरह।
- डॉ शरद सिंह
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Achhi rachna....
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