Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
कभी जीना इस तरह भी
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पसंद रहा
तुम्हें सदियों तक
हाथ भर लंबा घूंघट वाला मेरा रूप
कभी सोचा-
कैसे सांस ली मैंने
कैसे तरसी हूं ताज़ा हवा को मैं
कैसे वंचित रही सुंदर दृश्यों से
कैसे किया है दमन अपनी मानवीय इच्छाओं का
कभी रह कर देखना तुम भी
किसी अंधेरे कमरे में
जंजीरों से बंध कर
कभी जीना इस तरह भी
शायद कर सको अनुभव मेरे
अतीत की घुटन को
शायद .....
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
स्त्री के मन का कब हुआ है
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