मित्रों का स्वागत है - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
बहुत ही खुबसूरत सावन में भीगी पंक्तिया....
बहुत सुन्दर मीठे भरे दिन, खुशियों भरी याद हमेशा याद रहती है...:-)
वाह ... अनुपम भाव
सुंदर अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें
तो उन्हें कहाँ भूले होंगे......:-)आते ही होंगे...अनु
:):) सुंदर अभिव्यक्ति
अति सुंदर ...आभार आपका !
बहुत सुंदर चित्रमय अभिव्यक्ति,,,,,आभार RECENT POST...: दोहे,,,,
वाह, कैसे भूलेंगे..
बहुत सुन्दर प्रस्तूति ....!
बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर...
sunder
पिछले सावन के वो पलछिन मुझे नहीं भूले.....भींगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन बहुत खूब
सुंदर भावभिव्यक्ति...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
प्रशंसनीय....। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जी.... झूलों की रस्सी कभी-कभी रिश्तों की रस्सी से सख्त होती है... और झूला झूलने का आमंत्रण झूले की रस्सी पर ही नहीं, रिश्तों की रस्सी पर बी निर्भर होता है....।
बहुत ही खुबसूरत सावन में भीगी पंक्तिया....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमीठे भरे दिन, खुशियों भरी याद हमेशा
याद रहती है...
:-)
वाह ... अनुपम भाव
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुभकामनायें
तो उन्हें कहाँ भूले होंगे......
ReplyDelete:-)
आते ही होंगे...
अनु
:):) सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअति सुंदर ...
ReplyDeleteआभार आपका !
बहुत सुंदर चित्रमय अभिव्यक्ति,,,,,आभार
ReplyDeleteRECENT POST...: दोहे,,,,
वाह, कैसे भूलेंगे..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तूति ....!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
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ReplyDeletesunder
ReplyDeleteपिछले सावन के वो पलछिन मुझे नहीं भूले.....
ReplyDeleteभींगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन
बहुत खूब
सुंदर भावभिव्यक्ति...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteप्रशंसनीय....। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteजी.... झूलों की रस्सी कभी-कभी रिश्तों की रस्सी से सख्त होती है... और झूला झूलने का आमंत्रण झूले की रस्सी पर ही नहीं, रिश्तों की रस्सी पर बी निर्भर होता है....।
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