Sharad Singh
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03 March, 2024
शायरी | ज़िंदगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
किसी क़ीमत मोहब्बत हो सकी न ज़िंदगी से
लिहाज़ा ज़िंदगी भी अजनबी लगने लगी है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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