ग़ज़ल
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
यूं लगेगा कि प्यार करता है
इस सलीक़े से वार करता है
बात जज़्बे की मत करो उससे
रूह भी तार - तार करता है
मुफ़लिसी झूठ-सी लगे उसको
दौलतें जो शुमार करता है
वो कभी सच न देख पाएगा
खु़द ही अपना हिसार करता है
और ये है 'शरद' का दिल पागल
जो सदा ग़म-गुसार करता है
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*हिसार = क़िलेबंदी
*ग़म-गुसार = दुख-दर्द का बाँटने वाला, सहानुभूति प्रकट करने वाला
वाह !!! लाजवाब ग़ज़ल । पहले शेर ने ही चारों खाने चित्त कर दिया ।
ReplyDeleteयूं लगेगा कि प्यार करता है
इस सलीक़े से वार करता है।
कमाल बस 👌👌👌
अंदाज़-ए-बयां का क्या कहिए ।
ReplyDeleteअल्फ़ाज़ बड़े ही ज़ालिम हैं ।।
ऋतु बिन दरिद्र है वो , जीता न और मरता है ।
तिल-तिल सुलग-सुलग कर , वो राख में बिखरता है ।।