31 March, 2021

काश, पूछता कोई मुझसे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | ग़ज़ल संग्रह | पतझड़ में भीग रही लड़की

Dr (Miss) Sharad Singh

ग़ज़ल


काश, पूछता कोई मुझसे


- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


काश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?

जैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी  वैसी हूं?


भीड़ भरी दुनिया में  मेरा  एकाकीपन  मुझे सम्हाले

कोलाहल की सरिता बहती,  जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।


मेरी चादर,  मेरे बिस्तर,  मेरे सपनों में  सिलवट है

लम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।


अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना

पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।


जो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का

आज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)


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17 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-04-2021) को
    "जूही की कली,मिश्री की डली" (चर्चा अंक- 4024)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. मीना भारद्वाज जी,
      मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत-बहुत आभार 🌹🙏🌹
      यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है...

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  2. पूछ रहे हम आज आपसे कैसी हैं आप
    खुश गर नहीं रहीं तो लगेगा आपको पाप :) :)

    पतझड़ में भीग रही लड़की कुछ ज्यादा भीग रही :):)

    अच्छी ग़ज़ल ..

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    1. बहुत प्यारी सच टिप्पणी...
      बहुत आत्मीय...
      हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी आपको 🌹🙏🌹

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी 🙏🌹🙏

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  5. वाह! सुंदर, जज़्बाती गजल ।

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    1. दिली शुक्रिया जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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  6. वाह... बहुत सुंदर और शानदार ग़ज़ल

    साधुवाद 🙏

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  7. जो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का

    आज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।
    बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी गजल।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा देवरानी जी 🌹🙏🌹

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  8. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल।

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    1. दिली शुक्रिया अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹

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  9. मेरी चादर, मेरे बिस्तर, मेरे सपनों में सिलवट है
    लम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।
    अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना
    पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।
    वाह विकल मन के भावों को कितनी खूबसूरती से शब्द दे दिए आपने शरद जी | भावपूर्ण रचना के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई |

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