Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
काश, पूछता कोई मुझसे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
काश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?
जैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी वैसी हूं?
भीड़ भरी दुनिया में मेरा एकाकीपन मुझे सम्हाले
कोलाहल की सरिता बहती, जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।
मेरी चादर, मेरे बिस्तर, मेरे सपनों में सिलवट है
लम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।
अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना
पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।
जो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का
आज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-04-2021) को
"जूही की कली,मिश्री की डली" (चर्चा अंक- 4024) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना भारद्वाज जी,
Deleteमेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत-बहुत आभार 🌹🙏🌹
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है...
पूछ रहे हम आज आपसे कैसी हैं आप
ReplyDeleteखुश गर नहीं रहीं तो लगेगा आपको पाप :) :)
पतझड़ में भीग रही लड़की कुछ ज्यादा भीग रही :):)
अच्छी ग़ज़ल ..
बहुत प्यारी सच टिप्पणी...
Deleteबहुत आत्मीय...
हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी आपको 🌹🙏🌹
जोरदार गज़ल
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी 🙏🌹🙏
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह! सुंदर, जज़्बाती गजल ।
ReplyDeleteदिली शुक्रिया जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह... बहुत सुंदर और शानदार ग़ज़ल
ReplyDeleteसाधुवाद 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏🙏
Deleteजो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का
ReplyDeleteआज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।
बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी गजल।
हार्दिक धन्यवाद सुधा देवरानी जी 🌹🙏🌹
Deleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteदिली शुक्रिया अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹
Deleteमेरी चादर, मेरे बिस्तर, मेरे सपनों में सिलवट है
ReplyDeleteलम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।
अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना
पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।
वाह विकल मन के भावों को कितनी खूबसूरती से शब्द दे दिए आपने शरद जी | भावपूर्ण रचना के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई |