Dr (Miss) Sharad Singh |
प्रिय ब्लाॅग साथियों,
बुंदेली बोली का विस्तार वर्तमान मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में है। इनमें मध्यप्रदेश के प्रमुख ज़िले हैं- पन्ना, छतरपुर, सागर, दमोह, टीकमगढ़ तथा दतिया। नरसिंहपुर, होशंगाबाद, सिवनी, भोपाल आदि में बुंदेली का मिश्रित रूप पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर तथा चरखारी में बुंदेली अपने शुद्ध रूप में बोली जाती है जबकि मैनपुरी, इटावा, बांदा में मिश्रित बुंदेली बोली जाती है।
बुंदेली बोली में भी विभिन्न बोलियों का स्वरूप मिलता है जिन्हें बुंदेली की उपबोलियां कहा जा सकता है। ये उपबोलियां हैं- मुख्य बुंदेली, पंवारी, लुधयांती अथवा राठौरी तथा खटोला। दतिया तथा ग्वालियर के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के पंवार राजपूतों का वर्चस्व रहा। अतः इन क्षेत्रों में बोली जाने वाली बुंदेली को पंवारी बुंदेली कहा जाता है। इनमें चम्बल तट की बोलियों का भी प्रभाव देखने को मिलता है। हमीरपुर, राठ, चरखारी, महोबा और जालौन में लोधी राजपूतों का प्रभाव रहा अतः इन क्षेत्रों की बुंदेली लुधयांती या राठौरी के नाम से प्रचलित है। यहां बनाफरी भी बोली जाती है। पन्ना और दमोह में खटोला बुंदेली बोली जाती है। जबकि सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, झांसी तथा हमीरपुर में मुख्य बुंदेली बोली जाती है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने सन् 1931 ईस्वी में जनगणना के आधार पर बुंदेली का वर्गीकरण करते हुए मानक बुंदेली (मुख्य बुंदेली), पंवारी, लुधयांती (राठौरी), खटोला तथा मिश्रित बुंदेली (बालाघाट, छिंदवाड़ा, नागपुर क्षेत्रा में) का उल्लेख किया था। वर्तमान में बुंदेली का जो स्वरूप मिलता है वह अपने प्राचीन रूप से उतना ही भिन्न है जितना कि संवैधानिक भाषाओं के प्राचीन तथा अर्वाचीन व्यावहारिक रूप में अन्तर आ चुका है।
चूंकि मैं भी बुंदेलखंड की हूं... बुंदेलखंड मेरी जन्मभूमि है इसलिए हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी भाषाओं के साथ-साथ मुझे बुंदेली में भी सृजन करना बहुत अच्छा लगता है ....तो आज अपना एक ताज़ा बुंदेली बालगीत आप सबसे साझा कर रही हूं -
बुंदेली बालगीत
मोए पढ़न खों जाने हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अम्मा ! मोए मम्मा घांई,
खूब बड़ो बन जाने है
मोए पढ़न खों जाने हैं ......
बस्ता ले देओ, बुश्शर्ट दिला देओ
मास्साब से मोए मिला देओ
स्कूले में नाम लिखा देओ
चल के भर्ती तो करवा देओ
मोए पढ़न खों जाने हैं ......
अम्मा ! मोरो टिफिन लगा देओ
अच्छो सो कछु और खिला देओ
मोरी मुंइया सोई धुला देओ
बाल ऊंछ देओ, मोए सजा देओ
मोए पढ़न खों जाने हैं ......
अम्मा ! छुटकी को समझा देओ
ऊको सोई स्लेट दिला देओ
ऊको मोरे संग भिजवा देओ
दोई जने खों ड्रेस सिला देओ
मोए पढ़न खों जाने हैं ......
-----------------------
कितने सुंदर भाव भरे हैं आपने इस रचना में
ReplyDeleteबार बार पढ़ा, काफी अच्छा लगा
हार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी 🌹🙏🌹
Deleteलोकभाषा के सौंदर्य का क्या कहना ! बहुत सुंदर और मन जीत लेने वाला बालगीत है यह ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹
Deleteशरद जी मुझे ऐसे बलगीतों और लोकगीतों से बड़ा लगाव है..बड़े ही मनमोही होते हैं, मन खुश गया..सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteसरस लगी भाषा . अच्छा बालगीत .
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
Deleteसुंदर बाल गीत ।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह
ReplyDeleteदिली शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ही सुंदर लोक भाषा की खुशबु से ओतप्रोत सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteसुंदर,सरस बालगीत ! पर टिफिन-ड्रेस-बुश्शर्ट, स्लेट-मास्साब से मेल नहीं खाते ! अन्यथा ना लीजिएगा
ReplyDeleteआपका मंतव्य मैं समझ गई हूं किन्तु बुंदेली में अंग्रेज़ी के अनेक शब्द ऐसे रच-बस गए हैं कि उन्हें बोलने वालों को यह ज्ञान और अहसास ही नहीं होता है कि वे शब्द अंग्रेजी के हैं। कई अपभ्रंश रूप में बोले जाते हैं तो कई स्पष्ट शुद्ध रूप में।
Deleteविचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
मीना भारद्वाज जी,
ReplyDeleteयह अत्यंत सुखद है कि मेरे बुंदेली बालगीत को आपने चर्चा मंच में स्थान दिया है। आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
वाह!बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अनिता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteबच्ची की इच्छा को दर्शाती हुई , पढ़ाई के महत्व को समझाती हुई , प्यारी सी रचना के लिए ढेरों बधाई हो आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत बढ़िया ,बेहतरीन
ReplyDeleteअभिनव !! सरस , लोक माधुरी !!!!
ReplyDelete