Dr (Miss) Sharad Singh |
महानगर ने छोड़ा उनको
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पेट की ख़ातिर घर से निकले, पेट की ख़ातिर धोखा खाया।
पेट ने जब ना साथ दिया, तब, मौत ने आ कर गले लगाया।
पेट ने जब ना साथ दिया, तब, मौत ने आ कर गले लगाया।
महानगर की निष्ठुरता ने, रोजी-रोटी सबकुछ छीना,
सिर पर छत भी रहने ना दी, जम कर जैसे बैर निभाया।
सिर पर छत भी रहने ना दी, जम कर जैसे बैर निभाया।
कल तक जो जीवनरेखा थे, आज उन्हीं का जीवन काटा,
महानगर ने छोड़ा उनको, पल भर को भी तरस न खाया।
महानगर ने छोड़ा उनको, पल भर को भी तरस न खाया।
नन्हें बच्चे, नई प्रसूता, बूढ़ी अम्मा ने भी देखो,
मजबूरी में मीलों चलने का अद्भुत साहस दिखलाया।
मजबूरी में मीलों चलने का अद्भुत साहस दिखलाया।
सड़कों पर हैं आज कतारें, एक राज्य से दूजे तक जो,
मानवता ने 'शरद' आज फिर, उनको है ढाढस बंधवाया।
--------------------
मानवता ने 'शरद' आज फिर, उनको है ढाढस बंधवाया।
--------------------
web magazine युवा प्रवर्तक ने आज मेरी यह ग़ज़ल अपने दिनांक 16.05. 2020 के अंक में प्रकाशित किया है।
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरी इन रचनाओं को पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=32834
🚩युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
आप इस Link पर भी मेरी इन रचनाओं को पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=32834
----------------------
#युवाप्रवर्तक #ग़ज़ल #Ghazal
#प्रवासीमज़दूर #लॉकडाउन #Labour #MigrantLabour #AutoDrivers
#MigrantWorker #शरदसिंह #DrSharadSingh #miss_sharad
#कोरोना #कोरोनावायरस #महामारी #सावधानी #सुरक्षा #सतर्कता #Coronavirus #corona #pandemic #prevention #StayAtHome #SocialDistancing
No comments:
Post a Comment