Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh on Children's Day |
वो भी तो मां का बच्चा है
- डॉ शरद सिंह
जो नन्हा, मुन्ना होता है लगता वो मन को अच्छा है
जो गुदड़ी में ही सोता है वो भी तो मां का बच्चा है
उसके भी हाथों में हों खेल-खिलौने
उसकी आंखों में भी हों स्वप्न सलोने
वो जो गंदे फुटपाथों पर घुटनों-घुटनों चलता है
जो हंसता है न रोता है, वो भी तो मां का बच्चा है
उसने भी जन्म लिया है इस दुनिया में
उसने क्या जुर्म किया है इस दुनिया में
वो जो कूड़े-कचरे से, बस, पन्नी बीना करता है
जो घर का जिम्मा ढोता है,वो भी तो मां का बच्चा है
अब मिल जाये उसको भी उसका बचपन
वह भी खेले, पढ़े और छू पाए गगन
वो जो विद्यालय के आगे बेरी बेचा करता है
जो दुख में सुख को बोता है,वो भी तो मां का बच्चा है
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ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रश्मि प्रभा जी !!!
Deleteबाल दिवस पर उन सभी बच्चों को शुभाशीष देती कविता जिनका बचपन फुटपाथों पर बीत रहा है..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी !!!
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