13 November, 2018

बचपन - डॉ शरद सिंह


Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh
बचपन
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जब  पहाड़ छोटे हो जाएं
और नदियां सिकुड़ जाएं
हाथ उठाकर टूटने लगें बेरी से बेर
बिना पंजों पर खड़े हुए
बनने लगे सामान उठाते
अलमारी के ऊंचे खाने से
बिना स्टूल पर चढ़े
पहुंच बनने लगे ऊंचाई पर रखे
उस मर्तबान तक
जिसमें मां छुपा कर
रखा करती थी बिस्कुट और मिठाइयां
बस, तभी समझ लेना चाहिए
कि छूट चुका है बचपन बहुत पीछे।
- डॉ शरद सिंह




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