मित्रों का स्वागत है - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
बहुत सुन्दर.....सादरअनु
bahut sundar tasveer ...aur man ke udgaar bhi ....
बेहतरीन प्रस्तुति
टूटे हुए पत्ते का रंग अक्सर बदल ही जाता है ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आपकी इस बात को मैंने भी दो दशकों पहले कभी एक गीत में कुछ यूँ कहा था : "आपके घर की हवा चली.मिली राहत, हेमंत टली.'पिकानद' हल्दी अंगों परलगाकर लगती है मनचली."*पिकानद = वसंत ऋतु
खुबसूरत प्यारी सी प्रस्तुति.क्या खूब कहा है आपने.
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...!!!!
बहुत सुन्दर |सागर की लहरों से निकल कर कभी -कभी इलाहाबाद के संगम की भी सैर कर लिया करिये |
स्मृतियाँ ही सुन्दरतम हैं।
हवा का रुख बदलता है, बदल पाई ऋतुएँ भी?बदल पायें तेरी यादें, ऐसी वो रुत कहाँ आई?
बहुत-बहुत सुन्दर....:-)
बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
इश्क में बूदी पंक्तियाँ ...बहुत खूब ...
.वाह वाऽऽह… ! बहुत ख़ूब … लाजवाब हमेशा की तरह …
बहुत खूब।प्रतीक संचेती
सुन्दर.....!
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteसादर
अनु
bahut sundar tasveer ...aur man ke udgaar bhi ....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteटूटे हुए पत्ते का रंग अक्सर बदल ही जाता है ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी इस बात को मैंने भी दो दशकों पहले कभी एक गीत में कुछ यूँ कहा था :
ReplyDelete"आपके घर की हवा चली.
मिली राहत, हेमंत टली.
'पिकानद' हल्दी अंगों पर
लगाकर लगती है मनचली."
*पिकानद = वसंत ऋतु
खुबसूरत प्यारी सी प्रस्तुति.
ReplyDeleteक्या खूब कहा है आपने.
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |सागर की लहरों से निकल कर कभी -कभी इलाहाबाद के संगम की भी सैर कर लिया करिये |
ReplyDeleteस्मृतियाँ ही सुन्दरतम हैं।
ReplyDeleteहवा का रुख बदलता है, बदल पाई ऋतुएँ भी?
ReplyDeleteबदल पायें तेरी यादें, ऐसी वो रुत कहाँ आई?
बहुत-बहुत सुन्दर....
ReplyDelete:-)
बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
ReplyDeleteइश्क में बूदी पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
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ReplyDeleteवाह वाऽऽह… ! बहुत ख़ूब …
लाजवाब हमेशा की तरह …
बहुत खूब।
ReplyDeleteप्रतीक संचेती
सुन्दर.....!
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