कवियों की रचनाओं का अनमोल संग्रह का संपादन मैं पुनः कर रही हूँ , सबकी तरफ से एक निश्चित धनराशि का योगदान है ... क्या शामिल होना चाहेंगे ? इस पुस्तक में 25-30 कवियों/कवयित्रियों की प्रतिनिधि कविताओं को संकलित की जायेंगी। इस पुस्तक का संपादन रश्मि प्रभा करेंगी। एक कवि को लगभग 6 पृष्ठ दिया जायेगा सहयोग राशि के बदले में पुस्तक की 25 प्रतियाँ दी जायेंगी।
यदि कोई कवि 25 से अधिक प्रतियाँ चाहता है तो उसे अभी ही कुल प्रतियों की संख्या बतानी होगी। अतिरिक्त प्रतियाँ उसे अधिकतम मूल्य (जो कि रु 300 होगा) पर 50 प्रतिशत छूट (यानी रु 150 प्रति पुस्तक) पर दी जायेंगी। यदि किसी कवि ने अतिरिक्त कॉपियों का ऑर्डर पहले से बुक नहीं किया है तो बाद में अतिरिक्त कॉपियों की आपूर्ति की गारंटी हिन्द-युग्म या रश्मि प्रभा की नहीं होगी। यदि प्रतियाँ उपलब्ध होंगी तो 33 प्रतिशत छूट के बाद यानी रु 200 में दी जायेंगी। कविता-संग्रह की कविताओं पर संबंधित कवियों का कॉपीराइट होगा। सभी कवियों और संपादक को 20 प्रतिशत की रॉयल्टी दी जायेगी (बराबर-बराबर)
शरद सिंह जी आपने तो चन्द शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है । सन 2000 से पहले मनेन्द्रगढ़[ आज का छत्तीसगढ़ में] के डिग्री कॉलिज में एक बार आपकी प्रभावशाली कविताएँ सुनी थी । आज तक अपनी अभिव्यक्ति में वही ताज़गी बनाए हुए हैं आप ।
आदरणीया शरदजी, नमस्कार जिस तरह " हरी अनंत - हरी कथा अनंत " ठीक उसी प्रकार "प्रेम अनंत - प्रेम कथा अनंत " ढाई अक्षर में आज पूरा विश्व बंधा हुआ है , अगर ये ढाई अक्षर नहीं होते तो इंसान का अस्तित्व कब का खत्म हो गया होता !
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/ चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
संजय कुमार चौरसिया जी, आपने सही लिखा है कि-‘ढाई अक्षर में आज पूरा विश्व बंधा हुआ है , अगर ये ढाई अक्षर नहीं होते तो इंसान का अस्तित्व कब का खत्म हो गया होता !’ मेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
Er. सत्यम शिवम जी, यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपने मेरी कविता का चयन शनिवासरीय चर्चा मंच हेतु किया है... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार !
मनोज कुमार जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसे चिन्तनशील साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
आदरणीया शरद जी , गिरीश बिल्लोरे जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर पहुंचे हैं ..और फिलहाल इतना ही कि अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं ।प्रिंट मीडिया के बाद यहाँ आपको देखना अच्छा लगा ।
ek darshnik ,dubara darshnik nahin ho sakata . kabir ne kaha hai---" dhayi aakhar prem ka padhe so pandit hoy" mithe jal -srot ke pravah jaisi rachana .badhayi ji.
अमित चंन्द्र जी, (ehsas) जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... हार्दिक धन्यवाद... मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आभार... आपका स्वागत है। संवाद बनाएं रखें।
ढ़ाई आखर को जिस सहज और सरल शब्दों में समझाया आपने, यकीनन वह बहुत आसान नहीं रहा होगा? कोई हाथों कि लकीरों के बहाने तो कोई जानते-बूझते प्रेम के दरीया में उतर कर डूबता - उतराता ही है। गवाही बस एक समन्दर की जरुरी है, कि कोई क्यूं डूब कर बच जाता है तो कोई डूब ही नहीं पाता है....? बेहतरीन रचना ..... , शुक्रिया।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, (उच्चारण) जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... आपके विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाए रखें....
साधना वैद्य जी, जानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार.... इसी तरह स्नेह एवं आत्मीयता बनाए रखें....
आशा जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसी चिन्तनशील कवयित्री के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
दिगम्बर नासवा जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसे साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
सलिल वर्मा जी,(चला बिहारी ब्लॉगर बनने) मेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया .... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार। इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
उठा बगुला प्रेम का ,तिनका उडा आकाश तिनका तिनके से मिला,तिनका तिनके पास
प्रेम का बगुला तो शब्द से,मौन से ,चितवन से या मुस्कुराहट से कैसे भी उठ खड़ा हो सकता है.जिनमें प्रेम हैं ,उन्हें तो बस बहाना चाहिये.लेकिन यह तय बात है कि प्रेम अहं को गला के आकाश जैसा विस्तृत कर देता है और प्रेम में प्रेमी को एकाकार कर देता हैं.
केवल राम जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसे दार्शनिक साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
जयकृष्ण राय तुषार जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसे साहित्य मनीषी के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी, मेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जैसे साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं.... इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे आपका मित्र दिनेश पारीक
दिनेश पारीक जी, आभारी हूं कि आपने अपने विचारों से अवगत कराया... किन्तु आपका उलाहना कि ‘और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था ’...आशय मैं समझ नहीं पा रही हूं। बहरहाल मैंने आपके ब्लॉग ‘कुछ तुम कहो कुछ मैं कहु’ पर आपका सुन्दर वैचारिक लेख पढ़ा है और उस पर अपने विचार भी टिप्पणी के रूप में में व्यक्त किए हैं। फिर भी अपनत्वपूर्वक अपने विचारों से अवगत कराया जिसके लिए हार्दिक धन्यवाद...
संगीता स्वरुप जी, आभारी हूं कि आपने मेरी कविता के प्रति अपनी रुचि प्रकट की... यह मेरे लिए उत्साहजनक है... कभी-कभी तकनीकी कारणों से सामग्री एक बार में पूरी लोड नहीं हो पाती है...फिर गड़बड़ी स्वतः ठीक हो जाती है...
"isi bhaavbhumi par aake kavi dinkar ne kahaa hogaa -satya hi rahtaa nahin ye dhyaan ,tum ,kavita ,kusum ,yaa kaamini ho . roshni ko bhi roshan kartaa hai prem jab mukhrit hotaa hai . veerubhai.
शरद जी, आपकी कविता क्या, आपको तो अरसे से समग्ररूप से पसंद करता हूं साहित्य में...न जाने कितनी कटिंग्स आज भी सहेजी हैं । बहुत दिलकश लिखती हैं आप..बधाई
Prem mukhrit hota hai to shabd khamosh ho jaate hain...man ke taar chhir jaate aur ham khamoshi ke sur merin taal milate hain...aankhein bolti hain...sirf aankhein...
Bahut badhiya shaili hai aapki...dekhan mein chhotan lage...bhaav bare gambheer... Badhayee.
आपकी रचनाओं में सृजन की नई उमंग नजर आती है जिसे कुछ शब्दों ,कुछ वाक्यों में कह पाना मुश्किल है साहित्य के क्षेत्र में आपका नाम माहा देवी वर्मा की तरह रोशन हो यही आशा के साथ ....
jab se blog sanskriti me pade hain banjaar ho gaye hain...kabhi is blog pe to kabhi us pe din beetta hai...sabne apne apne blog saja rakhe hain..shadon se behtarin bhavchitra bana rakhe hai..aapka naam kuch blogs pe lagatar paya..phir taswir dekhkar bhi sir chakaraya..kahin aapka sagar se koi sambandh to nahi hai prasna uth aaya.. utsuktawash aapke blog pe aaya..saamne aapka profile paya..sagar se aapke jujab ne utsukta jaga di..maine profile padhkar rachnaon pe najar laga di..behtarin rachnayein padhte padhte sochta ja raha tha...barshon pahle sagar mein hindu urdu majlis ka drishya najar aa raha tha..aapki kisi kitab ki charch thi..tabse jehan me jo naam tha use aaj blog pe dekhkar dil harshaya..aapne kamal kar dala..itne barson mein hi itna likh dala..aapki kalam chalti rahe..aapki mashal jalti rahe..inhi shabdon ke sath me pranam swikar kijiyega..aur kabhi vyasta na hon to mere blog pe bhi chand lamhe dijiyega
डॉ आशुतोष मिश्रा आशु जी, यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार.... मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ....इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
आपकी छोटी छोटी कविताये दिल में बस जाती है , कभी हंसती हिया , कभी रुलाती है .. क्या कहूँ.. आप तो बस इतना बेहतरीन लिखती है कि कुछ कहने केलिए शब्द नहीं होते है ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
नमस्कार.... बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........ आपका ब्लागर मित्र नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
samajhdaar logon ko ye naseeb nahin hota...pyaar koi bol nahin...pyaar awaaz nahin...ek khamoshi hai hai...kahti hai suna karti hai...
ReplyDelete.प्रेम का एक और सही अर्थ सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई
ReplyDeleteढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय...!
ReplyDeleteबहुत खुबसुरती से प्रेम को परिभाषित किया है...सुंदर।
ReplyDeleteवानभट्ट जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
सुनील कुमार जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
बहुत-बहुत धन्यवाद...
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
आपका सदा स्वागत है।
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
bas samajh sako to..... apn ye rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath
ReplyDeleteकवियों की रचनाओं का अनमोल संग्रह का संपादन मैं पुनः कर रही हूँ , सबकी तरफ से एक निश्चित धनराशि का योगदान
ReplyDeleteहै ... क्या शामिल होना चाहेंगे ?
इस पुस्तक में 25-30 कवियों/कवयित्रियों की प्रतिनिधि कविताओं को संकलित की जायेंगी।
इस पुस्तक का संपादन रश्मि प्रभा करेंगी।
एक कवि को लगभग 6 पृष्ठ दिया जायेगा
सहयोग राशि के बदले में पुस्तक की 25 प्रतियाँ दी जायेंगी।
यदि कोई कवि 25 से अधिक प्रतियाँ चाहता है तो उसे अभी ही कुल प्रतियों की संख्या बतानी होगी। अतिरिक्त प्रतियाँ उसे
अधिकतम मूल्य (जो कि रु 300 होगा) पर 50 प्रतिशत छूट (यानी रु 150 प्रति पुस्तक) पर दी जायेंगी।
यदि किसी कवि ने अतिरिक्त कॉपियों का ऑर्डर पहले से बुक नहीं किया है तो बाद में अतिरिक्त कॉपियों की आपूर्ति की गारंटी हिन्द-युग्म
या रश्मि प्रभा की नहीं होगी। यदि प्रतियाँ उपलब्ध होंगी तो 33 प्रतिशत छूट के बाद यानी रु 200 में दी जायेंगी।
कविता-संग्रह की कविताओं पर संबंधित कवियों का कॉपीराइट होगा।
सभी कवियों और संपादक को 20 प्रतिशत की रॉयल्टी दी जायेगी (बराबर-बराबर)
बिलकुल सही बात कही आपने.
ReplyDeleteसादर
शरद सिंह जी आपने तो चन्द शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है । सन 2000 से पहले मनेन्द्रगढ़[ आज का छत्तीसगढ़ में] के डिग्री कॉलिज में एक बार आपकी प्रभावशाली कविताएँ सुनी थी । आज तक अपनी अभिव्यक्ति में वही ताज़गी बनाए हुए हैं आप ।
ReplyDeleteसमझ सको तो इश्वर के-
ReplyDeleteपास ले जाता है प्रेम ....
समझ को समझाना भी एक समझ है .....!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......!!
चंद लफ़्ज़ो मे सारा फ़लसफ़ा समझा दिया………बेहतरीन
ReplyDeleteआदरणीया शरदजी, नमस्कार
ReplyDeleteजिस तरह " हरी अनंत - हरी कथा अनंत " ठीक उसी प्रकार "प्रेम अनंत - प्रेम कथा अनंत "
ढाई अक्षर में आज पूरा विश्व बंधा हुआ है , अगर ये ढाई अक्षर नहीं होते तो इंसान का अस्तित्व कब का खत्म हो गया होता !
बहुत सुन्दर लिखा !
jo na samjhe wo...
ReplyDeleteachhi sargarbhit batein...kavya roop me mukharit ho gayi...
vaah.......behtarin bhavabhivakti
ReplyDeleteaabhaar........!!
प्रेम को शब्दों की जरुरत ही कहाँ होती है.
ReplyDeleteदिल ने दिल की बात समझ ली अब मुंह से क्या कहना है...
सही अर्थों में प्रेम निश्छल होता है .
ReplyDeleteमुस्कान में गहन संप्रषण है।
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
रश्मि प्रभा जी,
ReplyDeleteआप कवियों की रचनाओं का अनमोल संग्रह का संपादन करने जा रही हैं...इस हेतु आपको हार्दिक बधाई...
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'जी, (सहज साहित्य)
ReplyDeleteमेरे काव्यपाठ के स्मरण हेतु आभारी हूं...सुखद लगा...
जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद..
अनुपमा जी,
ReplyDeleteमेरे गीत पर प्रतिक्रिया देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
वंदना जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि मेरी गज़ल आपको पसन्द आई....
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
संजय कुमार चौरसिया जी,
ReplyDeleteआपने सही लिखा है कि-‘ढाई अक्षर में आज पूरा विश्व बंधा हुआ है , अगर ये ढाई अक्षर नहीं होते तो इंसान का अस्तित्व कब का खत्म हो गया होता !’
मेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
विजय रंजन जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
गौरव शर्मा "भारतीय" जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत एवं आभार।
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
सुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
आपका सदा स्वागत है।
विजय माथुर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
प्रवीण पाण्डेय जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
हार्दिक धन्यवाद ....
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपने मेरी कविता का चयन शनिवासरीय चर्चा मंच हेतु किया है...
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार !
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसे चिन्तनशील साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
देवेन्द्र पाण्डेय जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
आदरणीय डॉ.शरद सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......!!
संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत एवं आभार।
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
पुनः आभार संजय भास्कर जी !
ReplyDeleteइसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
डॉ.शरद सिंह जी
ReplyDelete...... बहुत सुंदर काबिलेतारीफ बेहतरीन
बहुत भावपूर्ण शब्द रचे हैं......सुंदर
ReplyDeleteप्यार तो प्यार होता है। ये तो दिल की आवाज है। जुबॉ की जरूरत ही नही पड़ती।
ReplyDeleteआदरणीया शरद जी , गिरीश बिल्लोरे जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर पहुंचे हैं ..और फिलहाल इतना ही कि अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं ।प्रिंट मीडिया के बाद यहाँ आपको देखना अच्छा लगा ।
ReplyDeleteवाह....लाजवाब कथन.
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रेम की ... बधाई... और फोटो भी बहुत सौम्य.. :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है और प्रस्तुतिकरण भी बहुत शानदार है!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ek darshnik ,dubara darshnik nahin ho sakata .
ReplyDeletekabir ne kaha hai---" dhayi aakhar prem ka padhe so pandit hoy" mithe jal -srot ke pravah jaisi rachana .badhayi ji.
प्रेम की बहुत सुन्दर परिभाषा दी है आपने इस छोटी सी रचना में!
ReplyDeleteप्रेम पर संक्षिप्त मगर सारगर्भित अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी,
ReplyDeleteपुनः ...पुनः ...पुनः आभार !
डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
अमित चंन्द्र जी, (ehsas)
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद...
मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आभार... आपका स्वागत है।
संवाद बनाएं रखें।
शरद कोकास जी,
ReplyDeleteअपने ब्लॉग पर आपको देख कर सुखद लगा...
आपका स्वागत है।
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
नीरज गोस्वामी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
विवेक जैन जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
क्या बात है .....निर्मल आनन्द मिला .....आभार !
ReplyDeleteआदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
ढ़ाई आखर को जिस सहज और सरल शब्दों में समझाया आपने, यकीनन वह बहुत आसान नहीं रहा होगा?
कोई हाथों कि लकीरों के बहाने तो कोई जानते-बूझते प्रेम के दरीया में उतर कर डूबता - उतराता ही है। गवाही बस एक समन्दर की जरुरी है, कि कोई क्यूं डूब कर बच जाता है तो कोई डूब ही नहीं पाता है....?
बेहतरीन रचना ..... , शुक्रिया।
रविकुमार सिंह
एक गहन एवं गंभीर दर्शन को आपने थोड़े से शब्दों में सशक्त रूप से अभिव्यक्त किया है ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteउदय वीर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, (उच्चारण)
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आपके विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई ...
बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
निवेदिता जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचार व्यक्त के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
रविकुमार सिंह जी,(babul)
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
स्नेह बनाए रखें....
साधना वैद्य जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह स्नेह एवं आत्मीयता बनाए रखें....
bahut khubsurat kabita....sharad ji namste....chhoti chhoti baaton me kabhi kabhi gehre bhaaw chhipe hote hai....bhut lajabab...
ReplyDeleteआरती झा जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
आशा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसी चिन्तनशील कवयित्री के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
काश कि कोई कमझ पाता....मैं भी समझ पाती कि किन शब्दों में तारीफ करूं...
ReplyDeleteबेहतरीन
यदि समझ सको तो... कितनी गहरी बात, कितना कठिन कार्य, कितने कौशल की आवश्यकता और आप उसे चंद शब्दों में कह गईं।
ReplyDeleteवीना जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
धीरेन्द्र सिंह जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
Aur is ek shabd ko samajhne mein hi jeevan dita dete hain log ... lajawaab ...
ReplyDeleteचंद पंक्तियों में ही प्रेम की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... लाजवाब रचना...
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसे साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
संध्या शर्मा जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई ...
बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
इसमें कोई दो राय नहीं है दोस्त |
ReplyDeleteहकीक़त को परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
निस्संदेह प्रेम ऐसा ही होता है .बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeletehar baar ki tarah prashansaa hi karni pad rahi hai. ab jo achchha hi likhe, to kahnaa hi padega-vaah-vaah....
ReplyDeleteapki is prastuti me prem ke liye aisi hi chhavi banayi jaye to sach me ek shabd se bhi adhik mukhar ho jata hai prem. sunder prastuti.
ReplyDeleteतमाम बुद्धिजीवियों की तरह एक अप्रतिम लघु रचना के लिए मेरी तरफ से भी आपको बधाई.. अतुल
ReplyDeleteमानाक्षी पंत जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
गिरीश पंकज जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आप जैसे साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
अनामिका जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
अतुल कुश्वाहा जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अनेक लोगों ने अनेकों अवसरों पर यही बात कही है..मगर आपके कहने पर लगा जैसे एक नयापन है प्रेमकी इस परिभाषा में.. बहुत ही कोमल!!
ReplyDeleteसलिल वर्मा जी,(चला बिहारी ब्लॉगर बनने)
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
प्रेम तो मुखर होकर नहीं बल्कि अनुभूति से प्रगाढ़ होता है ..बहुत सुंदर भाव ..आपका आभार
ReplyDeleteशब्दों को सार्थक करता, भावों के समर्थन में चित्र.
ReplyDeleteउठा बगुला प्रेम का ,तिनका उडा आकाश
ReplyDeleteतिनका तिनके से मिला,तिनका तिनके पास
प्रेम का बगुला तो शब्द से,मौन से ,चितवन से या मुस्कुराहट से
कैसे भी उठ खड़ा हो सकता है.जिनमें प्रेम हैं ,उन्हें तो बस बहाना चाहिये.लेकिन यह तय बात है कि प्रेम अहं को गला के आकाश जैसा विस्तृत कर देता है और प्रेम में प्रेमी को एकाकार कर देता हैं.
राम-राम जी,
ReplyDeleteएक शब्द
आपकी तो ज्यादा मेहनत टिप्पणी का जवाब देने में ओ गयी।
saarthk..
ReplyDeleteलाजवाब /बेमिसाल कम शब्दों में सहज और बेहतरीन अभिव्यक्ति |नमस्ते |
ReplyDeleteप्रेम ...
ReplyDeleteचितवन
मुस्कराहट
और मौन से 'ही' मुखर होता है शरद जी...
कितनी सीधी बात है मगर समझ कहाँ आती है
आभार !
हकीक़त को परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteकेवल राम जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसे दार्शनिक साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
राहुल सिंह जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
बहुत-बहुत धन्यवाद...
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है!
संदीप पंवार जी,(जाट देवता)
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
अमि'अज़ीम' जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
जयकृष्ण राय तुषार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसे साहित्य मनीषी के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
आनन्द द्विवेदी जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
Patali-The-Village,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
बहुत खुबसुरती से प्रेम को परिभाषित किया है...सुंदर
ReplyDeleteअत्यंत अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई.
ReplyDelete'यदि समझ सको तो'........यही तो विवशता है.
जो सहज है ,वही इतना दुरूह क्यों हो जाता है?!
वाह!! बेहतरीन भावों की प्रवाहमयी बानगी... उम्दा रचना.
ReplyDeleteमिथिलेश दुबे जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
ऋषभ जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
समीर लाल जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक
gagar me sagar bhara hai aapne kam shbdon me bahut kuchh kahna aapki visheshta hai
ReplyDeletebadhai
rachana
namaskar ji
ReplyDeleteblog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
bahut hi sunder sabdchitran
ReplyDeleteकम शब्दों में प्रेम रस का अद्भुत वर्णन . आभार .
ReplyDeletesharad ji , bahut hi kam shabdo me aapne jaadu sa bhar diya ... waah
ReplyDeletebadhayi .
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
इतने कम शब्दों में 'प्रेम' की इससे अच्छी परिभाषा और क्या हो सकती है !
ReplyDeleteवाह शरद जी ....चित्र का संयोजन आपकी कविता को स्वरुप प्रदान कर रहा है |
"ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय "
दिनेश पारीक जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने अपने विचारों से अवगत कराया...
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाए रखें.
रचना जी,
ReplyDeleteआपके आत्मीय विचार मेरे लिए अमूल्य हैं...
इसी तरह स्नेह बनाए रखें....
हार्दिक आभार...
ओम कश्यप जी,
ReplyDeleteदेर से ही सही...आपका आना सुखद लगा...
मेरी कविता को पसन्द करने के लिए आभार..
संवाद बनाए रखें....
आशीष जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
विजय कुमार सप्पत्ती जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये हार्दिक आभार....
सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप जैसे साहित्यकार के विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
ReplyDeleteबस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
दिनेश पारीक जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने अपने विचारों से अवगत कराया...
किन्तु आपका उलाहना कि ‘और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था ’...आशय मैं समझ नहीं पा रही हूं। बहरहाल मैंने आपके ब्लॉग ‘कुछ तुम कहो कुछ मैं कहु’ पर आपका सुन्दर वैचारिक लेख पढ़ा है और उस पर अपने विचार भी टिप्पणी के रूप में में व्यक्त किए हैं।
फिर भी अपनत्वपूर्वक अपने विचारों से अवगत कराया जिसके लिए हार्दिक धन्यवाद...
शरद जी ,
ReplyDeleteकुछ व्यस्तता की वजह से देर से आना हुआ ...पर आपकी रचना पूरी नहीं पढ़ पा रही हूँ ..
प्रेम ,
एक शब्द भी ...
अब इसके आगे क्या है नहीं मालूम ...आप मेल कर सकती हैं ..
sangeetaswarup@gmail.com
वैसे प्रेम को अपने शब्दों के अनुसार परिभाषित किया होगा जो निश्चय ही सटीक होगा ...
वाह ... बहुत ही अनुपम शब्द रचना ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने मेरी कविता के प्रति अपनी रुचि प्रकट की... यह मेरे लिए उत्साहजनक है...
कभी-कभी तकनीकी कारणों से सामग्री एक बार में पूरी लोड नहीं हो पाती है...फिर गड़बड़ी स्वतः ठीक हो जाती है...
इसी तरह स्नेह बनाए रखें....
हार्दिक आभार...
सदा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
आपके विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं....
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
"isi bhaavbhumi par aake kavi dinkar ne kahaa hogaa -satya hi rahtaa nahin ye dhyaan ,tum ,kavita ,kusum ,yaa kaamini ho .
ReplyDeleteroshni ko bhi roshan kartaa hai prem jab mukhrit hotaa hai .
veerubhai.
'Besabab n huaa kare aamad-e-baadal
ReplyDeletehar boond ko teri khushbuon ka sila mile'.....
...........bahut hi umda....prem ki shabdon me abhivykti..itni khubsurti k saath...bahut badiya hai...
जी हाँ ..गडबड़ी ठीक हो गयी :):) और सही कहा है की प्रेम शब्द के बिना भी मुखर हो जाता है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवीरूभाई जी,
ReplyDeleteआपके सुन्दर विचारों के लिए आभार...
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाए रखें.
रमेश जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
हार्दिक धन्यवाद....
इसी तरह स्नेह बनाए रखें....
मौन भी अभिव्यक्ती का माध्यम है और प्रेम तो मौन अभिव्यक्ति है. अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteIt's not easy to comprehend 'Love'. It's a beautiful feeling.
ReplyDeleteप्रेम बिन बोले बहुत कुछ कह जाता है आँखों से मुस्कानसे । सुंदर बहुत ही सुंदर ।
ReplyDeleteढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए....बहुत खूब...
ReplyDeleteगुर्रमकोंडा नीरजा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराती रहें।
दिव्या श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये हार्दिक आभार....
आशा जोगलेकर जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
अमित श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
बहुत ही ख़ूबसूरत तस्वीर के साथ बहुत ही ख़ूबसूरत बात कही आपने।
ReplyDeleteछोटी-छोटी रचनाएँ और प्रस्तुति का बेहतरीन अँदाज...
ReplyDeleteऔर एक गुस्से से !
ReplyDeleteप्रेम की भाषा ही अलग है ..
समझने के लिए दिल चाहिए ..
बहुत सुंदर रचना , शुभकामनाएँ...
शरद जी, आपकी कविता क्या, आपको तो अरसे से समग्ररूप से पसंद करता हूं साहित्य में...न जाने कितनी कटिंग्स आज भी सहेजी हैं । बहुत दिलकश लिखती हैं आप..बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और शानदार रचना प्रस्तुत किया है आपने! उम्दा पोस्ट!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत कविता
ReplyDeleteजानते हैं खामौशी भी एक जुबां होती है
ReplyDeleteआपकी हर अदा खुद में एक बयां होती है
wah.bahut achche.
ReplyDeleteलाल और बवाल जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
के एन कायस्थ जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
कृपया इसी तरह अपने विचारों से अवगत कराते रहें।
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये हार्दिक आभार....
मनोज अबोध जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
हार्दिक धन्यवाद....
इसी तरह स्नेह बनाए रखें....
उर्मी जी, (Babli)
ReplyDeleteजानकर सुखद लगा कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
मनु जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
मोहिन्दर कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया ....
हार्दिक धन्यवाद।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
डॉ.साहिबा आपने मेरे ब्लॉग से अभी तक क्यूँ मुहँ मोड़ा हुआ है.
ReplyDeleteकोई नाराजगी हों तो बताईयेगा.आपके बैगर मेरी हर पोस्ट अधूरी सी लगती है.
Prem mukhrit hota hai to shabd khamosh ho jaate hain...man ke taar chhir jaate aur ham khamoshi ke sur merin taal milate hain...aankhein bolti hain...sirf aankhein...
ReplyDeleteBahut badhiya shaili hai aapki...dekhan mein chhotan lage...bhaav bare gambheer...
Badhayee.
prem hota hi aise h
ReplyDeleteकुछ रचनाएं ऐसी होती है कि कितनी बार पढिए वो हमेशा नई लगती हैं। ये रचना कुछ वैसी ही है। बहुत सुंदर
ReplyDeleteराकेश कुमार जी,
ReplyDeleteआपके उलाहने का स्वागत है...यात्राओं के कारण कई दिन बाद ब्लॉग पर लौटी हूं.
विजय रंजन जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
विकास गर्ग जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
महेन्द्र श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
हार्दिक धन्यवाद....
इसी तरह स्नेह बनाए रखें....
very nice creation .
ReplyDeleteDr Divya ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem. Hearty thanks.
You're always welcome.
आदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteप्रेम इतनी आत्मीय अभिव्यक्ति आप·े माध्यम से मुझे समझने ·े लिए मिली , इस·े लिए शु·्रिया.......।
कनक जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
Theek kaha aapne
ReplyDeletepyaar mahsoos karne ki cheej hai
kahne sune ki nahin.....
bahut khoob
आपकी रचनाओं में सृजन की नई उमंग नजर आती है जिसे कुछ शब्दों ,कुछ वाक्यों में कह पाना मुश्किल है
ReplyDeleteसाहित्य के क्षेत्र में आपका नाम माहा देवी वर्मा की तरह रोशन हो यही आशा के साथ ....
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nabham_vayu ji,
ReplyDeleteThanks for your comments.
You are always welcome in my blog.
लक्ष्मीनारायण लहरे जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
jab se blog sanskriti me pade hain banjaar ho gaye hain...kabhi is blog pe to kabhi us pe din beetta hai...sabne apne apne blog saja rakhe hain..shadon se behtarin bhavchitra bana rakhe hai..aapka naam kuch blogs pe lagatar paya..phir taswir dekhkar bhi sir chakaraya..kahin aapka sagar se koi sambandh to nahi hai prasna uth aaya.. utsuktawash aapke blog pe aaya..saamne aapka profile paya..sagar se aapke jujab ne utsukta jaga di..maine profile padhkar rachnaon pe najar laga di..behtarin rachnayein padhte padhte sochta ja raha tha...barshon pahle sagar mein hindu urdu majlis ka drishya najar aa raha tha..aapki kisi kitab ki charch thi..tabse jehan me jo naam tha use aaj blog pe dekhkar dil harshaya..aapne kamal kar dala..itne barson mein hi itna likh dala..aapki kalam chalti rahe..aapki mashal jalti rahe..inhi shabdon ke sath me pranam swikar kijiyega..aur kabhi vyasta na hon to mere blog pe bhi chand lamhe dijiyega
ReplyDeleteडॉ आशुतोष मिश्रा आशु जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ....इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
आपकी छोटी छोटी कविताये दिल में बस जाती है , कभी हंसती हिया , कभी रुलाती है .. क्या कहूँ.. आप तो बस इतना बेहतरीन लिखती है कि कुछ कहने केलिए शब्द नहीं होते है ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
srangar ras se paripoorana kavita ke lie aapka bahut2 shukriya.
ReplyDeleteविजय कुमार जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
डॉ सुशीला गुप्ता जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आपका सदा स्वागत है.
नमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
बहुत अच्छा ।
ReplyDelete।अच्छी प्रस्तुती।
मेरी कविता मेरी आँखों में पढो।मई को
ReplyDeleteपढिये अच्छा लगेगा।धन्यवाद।