प्रेम का आरम्भ और और प्रेम का उपसंहार बस प्रेम ही तो है. 'पूर्ण इद पूर्ण इदं पूर्णात पूर्णम उद्च्येत'
पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ लेने पर प्रेम में अपना होश ही कहाँ रह जाता है जी.
आपने मेरे ब्लॉग पर अपने प्रेम की आनंद वृष्टि से आरम्भ किया था,जिससे मेरी पोस्ट हरी भरी हो जाती थी.बिना इस वृष्टि के अब सूखा पड़ने लगा है जी .ऐसे घोर 'सूखे' से उपसंहार न कीजियेगा,प्लीज.
संगीता स्वरुप जी, यात्राओं के कारण कई दिन बाद ब्लॉग पर लौटी हूं... अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा... अनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए... इसी तरह संवाद बनाए रखें....
Er. सत्यम शिवम जी, आभारी हूं मेरी कविता को शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत करने के लिए... बहुत-बहुत आभार...... इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
जी बहुत सुंदर रचना है। सच कहें तो प्रेम का आरंभ और उपसंहार तक पहुंचना आसान नहीं है। या हम ये कहें कि उसे महसूस तो कर सकते हैं लेकिन शब्दों में व्यक्त करना वाकई मुश्किल है। क्योंकि ईमानदारी भी तो होनी चाहिए। पोथो पढ पढ जग मुआ, पंडित भया ना कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय।।
दो लाइन की एक मुकम्मल कविता.बहुत सुंदर शरद जी. आपकी दोनों झलकियाँ(ब्यूटी क्वीन और घर/ बाहरवाली ) निर्मित हो चुकी हैं.५ और १२ जून को आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारण है.
प्रेम का आरम्भ तो होता है पर उपसंहार कहाँ...यह तो वह पुस्तक है जिसका पढना कभी समाप्त नहीं होता...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
सराहनीय! आपकी की साहित्यिक-क्षणिकाओं की प्रदर्शनी में बिना टिकट लिए मैं प्रवेश कर गया और खो गया। निकलने के लिए अर्थ-दंड की अदायगी मुक्तक के रूप में कर रहा हूँ। ================================ प्रेम के संवेग में कुछ, पांव रखते बह गए। और कुछ ’प्रस्तावना’ में, ही भटक कर रह गए॥ किन्तु जो आगे गए, वे लोग फिर लौटे नहीं- वे तो ’उपसंहार’ में ही, घर बसा कर रह गए॥ ============================= सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
मीनू खरे जी, अनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए... कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें.... मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी झलकियां आपके द्वारा निर्मित हो कर लाजवाब रूप में सामने आएंगी...हृदय से आभारी हूं आपकी...
डॉ० डंडा लखनवी जी, मेरी कविता के तारतम्य में आपकी काव्य पंक्तियां मेरे लिए पारितोषक के समान हैं... अनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए... कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
होता कहाँ है प्रेम का प्रारब्ध ,प्रति -दान ,और अव -दान , प्रेम तो बस होता है ,फूलों की तरह , गूंगे के गुड सा , निर्गुनिया के ब्रह्म सा , एक समर्पण और एक मुग्धा भाव . और आरम्भ और उप-संहार ही क्यों - मध्यांतर भी तो होता होगा प्रेम का । होता होगा एक वर्तमान भी , या कि प्रेम सिर्फ एक प्रवाह है , सर्क्युलेशन हैं ,सांस की आवा -जाही है , जिसकी हर उच्छ्वास मेरी भी है तेरी भी । दूसरा है कहाँ , प्रश्न -करता कौन ? उत्तरदाता कौन ? भावों को खंगाल देतीं हैं शरद की रचनाएं .सुन्दर !मनोहर !
हम भी उस आसमान में उड़ने का खाव अपनी आँखों में रखते है ,अपनी कल्पनाओं के पंख तो हमने लगा लिया पर थोड़े से हमारे कदम डगमगाए से लगते है ,....बस आपकी कलम की सुन्दरता यूही बनी रहे ,चांदनी आये रात में आपसे बाते करने और सर्दियों की वो धुप आपका सुबह इंतजार करे .....
"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"
यदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है? http://4timeprayer4u.blogspot.com/
"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"
यदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है?
sharad ji kamaal hai .aapne to gagar me sagar wali kavita ko charitarth kar diya hai .bahut bahut sundar.prem ka kabhi ant nahi hota vah to insaan ki vafa aur jafa dono se hi jivan paryant bana rahta hai .ya yun kahiye ki prem ki abhivykti kabhi bhi na mitne wali muk bhashha hai jo dil me hamesha ke liye jajb ho jaati hai . bahut hi behatreen prastuti hardik badhai poonam
आपके ब्लॉग में आकर ऐसा लगा जैसे किसी institute में आ गयी हूँ.सभी ब्लोग्स को इत्मीनान से पढ़ रही हूँ. वक़्त लगेगा. आपके ब्लॉग ज्ञान-वर्धन के लिए हैं , टिपण्णी के लिए नहीं. यह मेरी टिपण्णी नहीं ,केवल भावना है.
संगीता स्वरुप जी, मेरी रचना का आपने चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011 हेतु चयन किया है, यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है. आपके इस स्नेह की अत्यंत आभारी हूं।
आपने हमारे ब्लाग पर अपने कदमों के निशान क्या छोड़े कि उनकी शिनाख़्त में आपके ब्लाग तक आ पहुँचा. आपका अंदाजे बयां पसन्द आया.ख़जुराहो की मूर्तियों पर आपका गंभीर अध्ययन भी देखा.
छन्द बद्ध कविता का आग्रही होने के बावज़ूद आपकी सहज सरल मार्मित उक्तियां बेहद असर कारक हैं.
तुमने मुझे पढ़ लिया
फिर बताओ क्या है मेरे प्रेम का आरंभ उपसंहार.
तस्वीर में दिलकश आँखों के सिवा होठो पर व्यंग्य भरी मुस्कान जैसे कह रही है क्यों बना रहे हो जनाब. अपनी ग़ज़ल में कहूँ-
वो हवाओं में वार करता है. बहुत ऊंचे शिकार करता है.
उसकी हसरत है क्या मैं जाने हूँ, मुझसे कहता है प्यार करता है.
सच तो ये जो खुद को ही उम्र भर न पढ़ पाया वो किसी को क्या पढ़ सकेगा आपकी कविता सारे भरम तोड़ कर आइना दिखा रही है.
शब्बा ख़ैर,
अब तो जाते हैं बुतकदे से मीर, फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया.
bibhinna blogs pe aapke comment dekh raha tha..to laga shayad ye naam to main barshon se jaanta hoon..sagar se koi rista to nahi hai..hindu urdu majlis mein kisi kitab ki charch bahut barso pahle ho rahi thi.. aap bahi sharad sing to nahin hai..aadi aadi...bas aaj main aapke blog tak pahuch gaya..aapki uplabdhiyan padhi..aap sagar se judi hai ye bhi jaana..jab pharmacy mein research kar raha tah tab bhi aapka naam sagar mein bahut charchit tha. in varshon mein aapki uplabdhiyan padhi..ataynt prashannata hui..mujhe thik se yaad nahi barsh 2000 ke karib aapki kisi nayi kitab par kaphi charcha hui thi..sagar ke karykraomon ke baad aapse is tarah milna behad accha laga..aap mere blog pe sadar amantrit hain..aapke comment mera path pradarshak honge
डॉ मिस शरद सिंह जी हार्दिक अभिवादन -इतना आसन होता ये किताब पढ़ प्यार की बता देना तो फिर क्या था ..दो लफ्जों की है ये कहानी ...पर सुन्दर रचना -सुन्दर भाव -बधाई शुक्ल भ्रमर ५ भ्रमर का दर्द और दर्पण
क्या है मेरे प्रेम का आरम्भ और उपसंहार ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ
हृदयस्पर्शी प्रश्न...
वाह!
ReplyDeleteशरद जी,इतनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं कि सिर्फ 'बहुत खूब' कह के निकला नहीं जा सकता है.
पढ़ तो डाली है प्रिये,मुहब्बत की किताब ,
पर क्या कहूं,कुछ समझ नहीं आता है,
कभी बन जाता है आगाज़ ही अंजाम,
कभी अंजाम फिर आगाज़ बन जाता है.
आपकी कलम को ढेरों सलाम.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteप्रेम का आरम्भ और और प्रेम का उपसंहार बस प्रेम ही तो है.
ReplyDelete'पूर्ण इद पूर्ण इदं पूर्णात पूर्णम उद्च्येत'
पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ लेने पर प्रेम में अपना होश ही कहाँ रह जाता है जी.
आपने मेरे ब्लॉग पर अपने प्रेम की आनंद वृष्टि से आरम्भ किया था,जिससे मेरी पोस्ट हरी भरी हो जाती थी.बिना इस वृष्टि के अब सूखा पड़ने लगा है जी .ऐसे घोर 'सूखे' से उपसंहार न कीजियेगा,प्लीज.
यही तो सस्पेंस है...कहानी में रोचकता बनाये रखने के लिए...
ReplyDeleteबताओ तो जानूं -
ReplyDeleteप्रेम की न जाने कितनी परिभाषाये है , आपने बगले झाकने का प्रश्न पूंछ लिया , हृदयस्पर्शी भी , बेहतरीन शब्दांकन के लिए बधाई
ReplyDeleteक्या है मेरे प्रेम का आरम्भ और उपसंहार ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ
बेहद खूबसूरत !
ReplyDeleteडॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
विशाल जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
मेरी कविता आपको पसन्द आई....बहुत-बहुत आभार......
अनुपमा जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई..
अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
बहुत कठिन है यह प्रश्न . उतना ही कठिन जितना प्रेम को प्रष्ट दर प्रष्ट पढ़ पाना. इस सुन्दर रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteवानभट्ट जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचार सुखद लगे....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
पृष्ठ दर पृष्ठ - गलती हो गई
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
कुश्वंश जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
संजय कुमार चौरसिया जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आपके आत्मीय विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
मेरी कविता आपको पसन्द आई....बहुत-बहुत आभार......
अवनीश सिंह चौहान जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
अभी उपसंहार बाकी है ...
ReplyDeleteआपको पढ़ना जारी है ...
जितने पृष्ठ लिखे
वो शायद पढ़ लिए हों
पर अभी और
पृष्ठ लिखना बाकी है ...
:):) बहुत दिनों बाद आप दिखाई दीं ... अच्छी प्रस्तुति
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteयात्राओं के कारण कई दिन बाद ब्लॉग पर लौटी हूं...
अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
अनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
gaagar me saagar
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुती! बधाई!
ReplyDeleteबबन पांडेय जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
उर्मि चक्रवर्ती जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुती! बधाई!
सुन्दर भाव भरी पंक्तियां अनेकों प्रशनों को उठाती हुई
ReplyDeleteप्रेम का आरम्भ = एक कसक, एक दर्द
प्रेम का उपसंहार = यादें, यादें और सिर्फ़ यादें
और मध्य = एक लम्बा इन्तजार
क्या कह दिया आपने...सब कुछ प्रेम के कुछ शब्दों को मौन का गीत ही बना दिया ...बहुत सुंदर।
ReplyDeleteन कोई उद्गम, कोई अन्त,
ReplyDeleteसमय के ऊपर बहे अनन्त।
इसका कोई आदि और अंत नहीं होता , जहाँ से शुरू होता है वही ठहरा रहता है क्योंकि इसके अंत के बाद तो फिर सृष्टि भी ख़त्म हो जाती है.
ReplyDeleteअमरेन्द्र जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आपके आत्मीय विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
मोहिन्दर कुमार जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके व्याख्यात्मक विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
प्रवीण पाण्डेय जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई... विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
रेखा श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteआपके आत्मीय विचारों के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
..क्या बात है शारदा जी आपकी सोंच को नमन ,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...
ReplyDeleteमै तो बस इतना जानू ....कि तुम में रब दिखता है यारा मै क्या करूँ ?
ਕੁਝ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹਾਂ...
....ਕਿ ਹਰ ਗੱਲ ਮੁਕਣੀ ਆ ਕੇ ਤੇਰੇ ਤੇ....!!!
ਕਦੇ ਵਕਤ ਮਿਲ਼ੇ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਹੜੇ ਫੇਰੀ ਪਾ ਜਾਣਾ !
हरदीप
जो शाश्वत हो उसका आरंभ क्या, अंत क्या!
ReplyDeleteकिताब खुली हओ, आंखें बंद, कोई पढ़े भी तो कैसे?
शब्द कम है मगर हैं भाव गहरे है.
ReplyDeleteये तो शायद ही कोई बता पाये। कम शब्दों में बेहतरीन भावों को समायोजन किया है।
ReplyDeleteक्या है मेरे प्रेम का आरम्भ और उपसंहार
ReplyDeletebahut khoob man ko chhoo gayi baat
आरम्भ में ’नेह’ था और उपसंहार में ’समर्पण’
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ।
कम शब्दों में ज्यादा कह जाने की महारत हासिल है आपको . प्यार की किताब प्रस्तावना और उपसंहार कौन बता पाया है .
ReplyDeleteसुनील कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
डॉ. हरदीप संधु जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
आदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
आरम्भ
और
उपसंहार
के जिस सिरे को जब वक्त की डोर बांध या जोड़ चलती है, तब शायद वहां से ही आरम्भ और उपसंहार सिर्फ बन कर रह जाता है प्रेम।
बेहतरीन सवाल, सारे अनुयायी खुद से भी यह सवाल पूछने से नहीं चूकेंगे?
शुक्रिया।
रविकुमार सिंह
http://babulgwalior.blogspot.com/
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई... विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
कुवंर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteआभारी हूं मेरी कविता को शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत करने के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
अमित चन्द्रा जी (ehsas),
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद.
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
रविकुमार सिंह जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
kya baat hai sharad ji ! :-)
ReplyDeletechhota sa prashn poora aakaash samete huye hai.
प्रेम का आरम्भ और और प्रेम का उपसंहार बस प्रेम ही है.सुन्दर मनभावन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबाबुषा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
वन्दना जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई... विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
जी बहुत सुंदर रचना है। सच कहें तो प्रेम का आरंभ और उपसंहार तक पहुंचना आसान नहीं है। या हम ये कहें कि उसे महसूस तो कर सकते हैं लेकिन शब्दों में व्यक्त करना वाकई मुश्किल है। क्योंकि ईमानदारी भी तो होनी चाहिए।
ReplyDeleteपोथो पढ पढ जग मुआ, पंडित भया ना कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय।।
बहुत सुंदर रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
वाह ... बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना, आपकी लेखनी बहुत कम लफ्जों में बहुत बड़ी बात कह जाती है|
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteगागर में सागर....बहुत खूब!
ReplyDeleteदेवेंद्र गौतम
bhut hi khubsurat... dil ko chu gayi...
ReplyDeleteक्या है प्रेम का आरम्भ और उपसंहार !
ReplyDeleteइतना कठिन प्रश्न ?
उत्तर सम्भव नहीं … :)
बहुत सुंदर रचना !
पिछली दो तीन रचनाएं भी अभी देखी हैं … सब एक से एक ख़ूबसूरत हैं … बधाई !
नाराज़ न हों तो पूछूं ? … आप जो चित्र लगाती हैं इतनी ख़ूबसुरत लड़कियां !
… आपकी ही कुछ वर्ष पहले की तस्वीरें हैं क्या ?
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
दो लाइन की एक मुकम्मल कविता.बहुत सुंदर शरद जी.
ReplyDeleteआपकी दोनों झलकियाँ(ब्यूटी क्वीन और घर/ बाहरवाली ) निर्मित हो चुकी हैं.५ और १२ जून को आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारण है.
क्या है मेरे प्रेम का आरम्भ और उपसंहार .....
ReplyDeleteप्रेम का आरम्भ तो होता है पर उपसंहार कहाँ...यह तो वह पुस्तक है जिसका पढना कभी समाप्त नहीं होता...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
mere prem ka aarambh aur upsanghar
ReplyDeletekya achchha puchha hai .pakde gaye bechare .
sunder abhivyakti
rachana
सराहनीय!
ReplyDeleteआपकी की साहित्यिक-क्षणिकाओं की प्रदर्शनी में बिना टिकट लिए मैं प्रवेश कर गया और खो गया। निकलने के लिए अर्थ-दंड की अदायगी मुक्तक के रूप में कर रहा हूँ।
================================
प्रेम के संवेग में कुछ, पांव रखते बह गए।
और कुछ ’प्रस्तावना’ में, ही भटक कर रह गए॥
किन्तु जो आगे गए, वे लोग फिर लौटे नहीं-
वे तो ’उपसंहार’ में ही, घर बसा कर रह गए॥
=============================
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
प्रकृति के किसी नियम का प्रारंभ और उपसंहार ढूँढना कठिन है. उसके मध्य में कई प्रश्न हैं और रहेंगे.
ReplyDeleteसुंदर और जीवन से भरी हुई रचना.
वाह... बहुत खूब... बहुत ही गहरी बात लिख दी है आपने!
ReplyDeleteमहेन्द्र श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर विचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत आभार।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें...
आशा जी,
ReplyDeleteआपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया...हार्दिक धन्यवाद।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें...
सदा जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
उर्मी जी,
ReplyDeleteआपका सदा स्वागत है...
देवेन्द्र गौतम जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद...
आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
सुषमा आहुति जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...आभारी हूं।
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
ReplyDeleteआभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
चित्रों की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
मीनू खरे जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी झलकियां आपके द्वारा निर्मित हो कर लाजवाब रूप में सामने आएंगी...हृदय से आभारी हूं आपकी...
कैलाश सी शर्मा जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
डॉ० डंडा लखनवी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के तारतम्य में आपकी काव्य पंक्तियां मेरे लिए पारितोषक के समान हैं...
अनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
भूषण जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
शाह नवाज़ जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
रचना जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
बात चाहे चित्र की करें या इस लघु प्रश्नकर्ता कविता की । दोनों ही बहुत खुबसूरती से उकेरी हुई सी लग रही हैं । धन्यवाद सहित...
ReplyDeleteआरम्भ का तो पता भी चल जाए लेकिन उपसंहार कभी नहीं होता ....गहरी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है आपने ....आपका आभार
ReplyDeleteरतन सिंह शेखावत जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद...
सुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
केवल राम जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...
आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
अति सुन्दर ....
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न .....
चित्र संयोजन क्या कहना !
गूंगे का गुड़ है जी, कैसे बताएं?
ReplyDeleteदो पंक्तियों में ही आपने बहुत कुछ कह दिया.
आभार.
सुरेन्द्र सिंह झंझट जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
ललित शर्मा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
Dil khush ho gaya aapko padh kar.. Aage bhi padhna chahunga , aapka samarthak bankar... Kabhi humare blog me bhi aaye.. Mujhe khusi hogi
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अविनाश मिश्र जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
विवेक जैन जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
होता कहाँ है प्रेम का प्रारब्ध ,प्रति -दान ,और अव -दान ,
ReplyDeleteप्रेम तो बस होता है ,फूलों की तरह ,
गूंगे के गुड सा ,
निर्गुनिया के ब्रह्म सा ,
एक समर्पण और एक मुग्धा भाव .
और आरम्भ और उप-संहार ही क्यों -
मध्यांतर भी तो होता होगा प्रेम का ।
होता होगा एक वर्तमान भी ,
या कि प्रेम सिर्फ एक प्रवाह है ,
सर्क्युलेशन हैं ,सांस की आवा -जाही
है ,
जिसकी हर उच्छ्वास मेरी भी है तेरी भी ।
दूसरा है कहाँ ,
प्रश्न -करता कौन ?
उत्तरदाता कौन ?
भावों को खंगाल देतीं हैं शरद की रचनाएं .सुन्दर !मनोहर !
बहुत खूब डा० शरद। मेरे हिसाब से-
ReplyDeleteमिलन में नैन सजल होते हैं, विरह में जलती आग
प्रियतम, प्रेम है दीपक राग
पूरी रचना यहाँ पर -http://manoramsuman.blogspot.com/2009/06/blog-post_09.html
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वीरू भाई जी,
ReplyDeleteएक सुन्दर कविता के रूप में की गई टिप्पणी के लिए आभारी हूं.
अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
श्यामल सुमन जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
सुन्दर और बेहतरीन कविता...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है..... उम्दा प्रस्तुती
आपका आभार
हम भी उस आसमान में उड़ने का खाव अपनी आँखों में रखते है ,अपनी कल्पनाओं के पंख तो हमने लगा लिया पर थोड़े से हमारे कदम डगमगाए से लगते है ,....बस आपकी कलम की सुन्दरता यूही बनी रहे ,चांदनी आये रात में आपसे बाते करने और सर्दियों की वो धुप आपका सुबह इंतजार करे .....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteShort and sweet !!
ReplyDeleteBeauteous..
सवाई सिंह राजपूत जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
पवन गुर्जर जी,
ReplyDeleteआपकी शुभेच्छाओं के लिए आभारी हूं...
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
समीर लाल जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
ज्योति मिश्रा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
आपका सदा स्वागत है।
बहुत खूब .. प्रेम का आरंभ और उपसंहार होता ही कहाँ ही ... ये तो सतत प्रवाह होता है ... लाजवाब पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteदो लाइनों में सब कुछ कह दिया ...जवाब शायद ही मिला होगा ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteDr.Singh, it is difficult to read different dimensions of life of an individual. Nice photograph and poetry. Thanks.
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत बहुत कुछ कह दिया
ReplyDeleteलाजवाब पंक्तियाँ
"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"
ReplyDeleteयदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है?
http://4timeprayer4u.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और गहरी सोच! साधुवाद!
ReplyDelete"कुछ लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारी से भी बच जाते हैं और इसके बाद वे लम्बा और सुखी जीवन जीते हैं, जबकि अन्य अनेक लोग साधारण सी समझी जाने वाली बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते और असमय प्राण त्यागकर अपने परिवार को मझधार में छोड़ जाते हैं! आखिर ऐसा क्यों?"
यदि आप इस प्रकार के सवालों के उत्तर जानने में रूचि रखते हैं तो कृपया "वैज्ञानिक प्रार्थना" ब्लॉग पर आपका स्वागत है?
दिगम्बर नासवा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
सतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
आचार्य परशुराम राय जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
रचना दीक्षित जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
वैज्ञानिक प्रार्थना,
ReplyDeleteआपका सदा स्वागत है...
sharad ji
ReplyDeletekamaal hai .aapne to gagar me sagar wali kavita ko charitarth kar diya hai .bahut bahut sundar.prem ka kabhi ant nahi hota vah to insaan ki vafa aur jafa dono se hi jivan paryant bana rahta hai .ya yun kahiye ki prem ki abhivykti kabhi bhi na mitne wali muk bhashha hai jo dil me hamesha ke liye jajb ho jaati hai .
bahut hi behatreen prastuti
hardik badhai
poonam
beautiful presentation sharad , keep writing
ReplyDeleteआरंभ और उपसंहार ! प्रेम की किताब पूरी पढ़ने पर ये पन्ने कहीं किताब में ही गुम हो जाते हैं !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ! हार्दिक शुभकामनाएँ !
गूढ़ प्रश्न !
ReplyDeleteपूनम जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
minoo bhagia ji,
ReplyDeleteI feel honored by your comment.
Hearty thanks!!!
You're always welcome.
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
हेम पाण्डेय जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
Great creation !
ReplyDeleteवाह! क्या बात है!
ReplyDeleteडॉ. दिव्या जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
देवेन्द्र पाण्डेय जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
बहुत सुंदर ,गहनता से परिपूर्ण प्रश्न .....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं
shabdo ka prayog behd khubsurti ke sath kiya gya hai hai... behtreen rachna ke liye apko dero bdhaye.
ReplyDeleteसुन्दर ........
ReplyDeleteमनप्रीत कौर जी,
ReplyDeleteआपके विचार जान कर प्रसन्नता हुई...आभारी हूं.
संवाद बनाए रखें.
अंजू जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
कनक जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
Richa P Madhwani ji,
ReplyDeleteThanks for visiting....always welcome!
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
संकेत के शब्द , स्पंदन की भाषा
ReplyDeleteजलाते पतंगे ने लिखी परिभाषा
गंगा - यमुना के संगम सी पावन
कलि -मधुकर की अनकही अभिलाषा .
अरुण कुमार निगम जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
वाह वाह! गागर में सागर! अतिउत्तम पंक्तियाँ
ReplyDelete'साहिल'जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
आप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं. चित्र भी कित्ता प्यारा है...बधाइयाँ.
ReplyDelete___________________
'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
kuchh kah bhi bahut kuchh kah diya aur vo sawaal puchh liya jiska jawaab koi kash hi de sake......heart touching poetry
ReplyDeleteregards
nishchit hi adbhut rachna.badhai.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में आकर ऐसा लगा जैसे किसी institute में आ गयी हूँ.सभी ब्लोग्स को इत्मीनान से पढ़ रही हूँ. वक़्त लगेगा. आपके ब्लॉग ज्ञान-वर्धन के लिए हैं , टिपण्णी के लिए नहीं. यह मेरी टिपण्णी नहीं ,केवल भावना है.
ReplyDeleteआदरणीया, Dr (Miss) Sharad सिंह जी सप्रेम अभिवादन
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में पहुच कर बहुत अच्छा लगा
आपकी लेखनी धार दार और संग्रहणीय है
आपको हार्दिक बधाई ......... लक्ष्मी नारायण लहरे
बहुत ही सुंदर| हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteप्रिय पाखी,
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए आभार...
अभिन्न जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
संतोष पाण्डेय जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
सपना निगम जी,
ReplyDeleteअपनी कविता और अपने ब्लॉग्स के बारे में आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई.
आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
लक्ष्मी नारायण लहरे जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
Patali-The-Village,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
मेरे ब्लाग पर आपके आगमन का धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपको नाचीज का कहा कुछ अच्छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार
आपका ब्लाग अच्छा लगा । बधाई
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteमेरी रचना का आपने चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011 हेतु चयन किया है, यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है. आपके इस स्नेह की अत्यंत आभारी हूं।
मनोज अबोध जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद...
उर्मि जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद...
कई बार पढ़ा पृष्ठ-दर-पृष्ठ........हर बार सिर्फ और सिर्फ आरम्भ ही आरम्भ नजर आता है.......
ReplyDeleteवाह शरद जी, पर इमानदारी से कोई बता सका है क्या...?
ReplyDeleteआपका ब्लाग भी बहुत खूबसूरत है...
साधुवाद .......
सुमित जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
योगेन्द्र मौदगिल जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
आपने हमारे ब्लाग पर अपने कदमों के निशान क्या छोड़े कि उनकी शिनाख़्त में आपके ब्लाग तक आ पहुँचा.
ReplyDeleteआपका अंदाजे बयां पसन्द आया.ख़जुराहो की मूर्तियों पर आपका गंभीर अध्ययन भी देखा.
छन्द बद्ध कविता का आग्रही होने के बावज़ूद आपकी सहज सरल मार्मित उक्तियां बेहद असर कारक हैं.
तुमने मुझे पढ़ लिया
फिर बताओ क्या है मेरे प्रेम का आरंभ उपसंहार.
तस्वीर में दिलकश आँखों के सिवा होठो पर व्यंग्य भरी मुस्कान जैसे कह रही है क्यों बना रहे हो जनाब.
अपनी ग़ज़ल में कहूँ-
वो हवाओं में वार करता है.
बहुत ऊंचे शिकार करता है.
उसकी हसरत है क्या मैं जाने हूँ,
मुझसे कहता है प्यार करता है.
सच तो ये जो खुद को ही उम्र भर न पढ़ पाया वो किसी को क्या पढ़ सकेगा आपकी कविता सारे भरम तोड़ कर आइना दिखा रही है.
शब्बा ख़ैर,
अब तो जाते हैं बुतकदे से मीर,
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया.
आमीन.
बहुत सुंदर .......
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteयह कविता भी अच्छी बन पड़ी है.
डॉ.सुभाष भदौरिया जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है.
महफूज़ अली जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
singhSDM ji,
ReplyDeleteHearty Thanks for your comment...
You are always welcome in my blogs.
Prem main padhna... Yeh to swam mai hi ek prashn ki utpatii hai!
ReplyDeletePrem mai bas prem hota hai, anubhuti hoti hai, samarpan hota hai, tyag hota hai... Prashna ya pratyuttar nahi!!!
शिल्पी जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
मोहक भावपूर्ण प्रश्न बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशरद जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों का चयन व् अति सुन्दर भावनायों की अविव्यक्ति
- आशु
अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
आशु जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
शनिवार (१८-०६-११)आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...नयी -पुरानी हलचल पर ..कृपया आईये और हमारी इस हलचल में शामिल हो जाइए ...
ReplyDeleteअनुपमा त्रिपाठी जी,
ReplyDeleteआपका आना सुखद लगा....उतना ही प्रसन्नतादायक संदेश...
आभारी हूं.
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
शानदार प्रस्तुती! बधाई!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. बधाई!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर ! upsnhar koi nhi sochta ! milna hi badi baat hai !
ReplyDeleteसुधीर जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर प्रसन्नता हुई. आभारी हूं.
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है...
कनेरी जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
ऊषा राय जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
खूबसूरत चित्र, और उतनी ही सुंदरता से व्यक्त किये गए भाव. धन्यवाद.
ReplyDeleteअभिषेक मिश्र जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है.
beautifully penned .in visit me to some time :)
ReplyDeleteprathi ji,
ReplyDeleteHearty Thanks for your comment...
You are always welcome in my blogs.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebibhinna blogs pe aapke comment dekh raha tha..to laga shayad ye naam to main barshon se jaanta hoon..sagar se koi rista to nahi hai..hindu urdu majlis mein kisi kitab ki charch bahut barso pahle ho rahi thi.. aap bahi sharad sing to nahin hai..aadi aadi...bas aaj main aapke blog tak pahuch gaya..aapki uplabdhiyan padhi..aap sagar se judi hai ye bhi jaana..jab pharmacy mein research kar raha tah tab bhi aapka naam sagar mein bahut charchit tha. in varshon mein aapki uplabdhiyan padhi..ataynt prashannata hui..mujhe thik se yaad nahi barsh 2000 ke karib aapki kisi nayi kitab par kaphi charcha hui thi..sagar ke karykraomon ke baad aapse is tarah milna behad accha laga..aap mere blog pe sadar amantrit hain..aapke comment mera path pradarshak honge
ReplyDeleteप्रेम का आदि और उपसंहार जिसने जान लिया वो पार हो गया. बहुत ही नायाब और श्रेष्ठतम रचना.
ReplyDeleteरामराम
प्रेम का आदि और उपसंहार जिसने जान लिया वो पार हो गया. बहुत ही नायाब और श्रेष्ठतम रचना.
ReplyDeleteरामराम
डॉ आशुतोष मिश्रा आशु जी,
ReplyDeleteस्मरण के लिए आभार...
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
विचारों से अवगत कराने के लिए.. हार्दिक धन्यवाद.
ताऊ रामपुरिया जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
डॉ मिस शरद सिंह जी हार्दिक अभिवादन -इतना आसन होता ये किताब पढ़ प्यार की बता देना तो फिर क्या था ..दो लफ्जों की है ये कहानी ...पर
ReplyDeleteसुन्दर रचना -सुन्दर भाव -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
Dr.Ashutosh Mishra "Ashu".
ReplyDeleteHearty thanks for your valuable comment !
You're always welcome.
शुक्ल भ्रमर जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...