मेरी यह ग़ज़ल अल्पना वर्मा, डॉ. मोनिका शर्मा, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. हरदीप संधु, डॉ. भवजोत कौर, सुधा ओम ढींगरा, इला प्रसाद, शिखा वार्ष्णेय, सुषम बेदी, ऊषाराजे सक्सेना, ज़क़िया ज़ुबेरी, तेजेन्द्र शर्मा, कृष्ण बिहारी आदि उन सभी की भावनाओं को समर्पित है जो भारत से बाहर रहते हुए भी भारत को हर पल जीते हैं।
सच है विदेश में रहने वालों को ऐसे ही अपने वतन की याद आती होगी ...खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी, हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteWah sharad ji,
ReplyDeleteGhazal ki jitani bhi taarif Karen kam hai.
Mera beta Jo sandiago men Pichle 1.1/2 saal se rah raha hai ,aur abhi 15 dinon se Yahan hamaare saath hai,ghazal padh kar usaki aankhen bhar aayi.
Aapki ghazal anubhaw karane ki hai .
बहुत खूब.. परदेस में रहने वाले के मन के भाव आपने यहाँ उकेर दिए.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा ,लेकिन अब तो अपने देश भी विदेश लगता है !
ReplyDeleteकाश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
बहुत मर्मस्पर्शी...अपने वतन से दूर रहने वालों की भावनाओं का बहुत सुन्दर चित्रण..
बचपन के साथी सब छूटे, छूट गये सहपाठी भी
ReplyDeleteबंद क़िताबों में छूटी जो, सतरें बहुत रुलाती हैं।
...बहुत अच्छा.
ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी, आपके पुत्र को स्नेहाशीष! आपके विचारों के लिए हार्दिक आभार!
ReplyDeleteमनोज जी हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteअमित-निवेदिता जी,हार्दिक आभार!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कैलाश जी!
ReplyDeleteमार्क राय जी,आपके विचारों के लिए हार्दिक आभार!
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल,अच्छे अशआर..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कुंवर कुसुमेश जी!
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बचपन के साथी सब छूटे, छूट गये सहपाठी भी
ReplyDeleteबंद क़िताबों में छूटी जो, सतरें बहुत रुलाती हैं।
शब्द नहीं हैं शरदजी ...क्या खूब रेखांकन किया है मनोभावों का.... बहुत बहुत आभार
काश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
शरद जी सुंदर भावों से सजी आपकी ग़ज़ल महसूस करने वाली है. बधाई.
रचना
बीते दिनों की याद दिला दी ......सुन्दर
ReplyDeleteबचपन के साथी सब छूटे, छूट गये सहपाठी भी
ReplyDeleteबंद क़िताबों में छूटी जो, सतरें बहुत रुलाती हैं।
वाह अति सुंदर ..!!
सुंदर मनोभाव -
बधाई एवं शुभकामनायें .
मनोभाव का सुंदर चित्रण!
ReplyDeletebahut bhaavpurn ghazal, daad sweekaaren.
ReplyDeleteकाश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
वाह, अति सुंदर.....
काश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
kash! yeh khayaal na jaane kitni baar zehn mein aata hai... bahut sunder kavita! dhanyawaad.
काश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
bhawbhini.
अंजना जी,हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
ReplyDeleteअनुपमा जी, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद!आपका स्वागत है!
ReplyDelete✽ संगीता स्वरुप जी
ReplyDelete✽ डॉ॰ मोनिका शर्मा जी
✽ रचना दीक्षित जी
✽ अंजना जी
✽ अनुपमा जी
✽ सूर्यकान्त गुप्ता जी
✽ जेन्नी शबनम जी
✽ सुनील कुमार जी
✽ मृदुला प्रधान जी
✽ अना जी
.......आप सभी को हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
परदेस में बसे लोगों के अंतर्मन को सही संदर्भों में अभिव्यक्त करती आपकी प्रस्तुति बेहद ही मन को आंदोलित कर गयी।नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteयह ग़ज़ल इतना प्रवाह पूर्ण हैकि बार्बार गाने को मन करता है! भाव इतने अच्छे हैं कि आंखें भर आती हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
Sunder bhavo se saji aapki rachna ne manmoh liya........
ReplyDeleteक्या खूब रेखांकन किया है मनोभावों का
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
ReplyDeleteHappy Republic Day.........Jai HIND
ये बहुत बड़ा सच है की हम जब किसी से दूर चले जाते हैं तो उसकी याद हमे ज्यादा सताती है !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
क्या बात है! बहुत सुंदर कविता, हर लाइन पढ़ कर ख़ुशी मिली.
ReplyDeleteकाश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
वाह ... बहुत ही सुन्दर
पोस्ट पढ़कर बरबस ही एक गाना याद आ गया -
'हम तो हैं परदेश में, देश में निकला होगा चाँद '
कविता की हर पंक्ति बहुत अच्छी लगी
बधाई
आभार
bhavpuran rachna...
ReplyDeleteनीचे दिए लिंक पर भी एक नज़र डालें ..
ReplyDeletehttp://chitthacharcha.co.in/?p=1481
@~प्रेम सरोवर जी
ReplyDelete@~मनोज कुमार जी
@~अमरेन्द्र ‘अमर’ जी
@~संजय भास्कर जी
@~मीनाक्षी पंत जी
@~मीनू खरे जी
@~क्रिएटिव मंच-Creative Manch
@~नीलम गर्ग जी
.......आप सभी को हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeletehttp://chitthacharcha.co.in/?p=1481 पर पहुंच कर चकित रह गई। चिट्ठाचर्चा में शामिल करके मनोज जी ने मुझे जो अपनत्व, मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है, उस के लिए मैं उनकी, चिट्ठाचर्चा की और आप सभी की बेहद आभारी हूं।
बहुत लाजवाब ... बेवतनों के जज्बातों को हूबहू लिख दिया है आपने ...
ReplyDeleteदिल में उतर जाता है हर शेर ..
दिगम्बर नासवा जी, आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद...
dusre ke dil ka haal bayaan ... kamaal hai
ReplyDeleteअहा! सुन्दर, मनमोहक प्रस्तुति!
ReplyDeleteब्लाग पृष्ठ भी बेहद कलात्मक !
यहाँ आकर मन को आन्तरिक ख़ुशी मिली.
हार्दिक धन्यवाद!
अपने देश की मिटटी की याद परदेश में रहकर कैसी महसूस होती होंगी आपकी रचना सार्थक कर देती है ..चिट्ठी आई है जैसे नवीनतम अहसास
ReplyDeleteकाफी समय बाद ब्लॉग में आया था ...अच्छा लगा
हम परदेशों में बैठे हैं ,प्यार संजोये अपनों का
ReplyDeleteशरद देश की इक-इक गलियां हमको रोज बुलाती हैं
आदरणीया शरद जी ,
ह्रदय को छू गयी आपकी सुन्दर ग़ज़ल
∎ रश्मि प्रभा जी
ReplyDelete∎ मनोज कुमार जी
∎ अरविन्द शुक्ल जी
∎ सुरेन्द्र सिंह‘झंझट’जी
∎ मनीष कुमार मिश्रा जी
.......आप सभी को हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
काश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
वाह ...बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने इन पंक्तियों में इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई ।
मनोभावों का क्या खूब रेखांकन किया है बधाई
ReplyDeleteमेरे मन की बात कह रही है आपकी कलम..
ReplyDeleteगजल में प्रवासी भारतीयों की मानसिकता बहुत ही सजीवता के साथ उत्कीर्ण की गयी है। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र खींचा है शरद जी आपने प्रवासी मन का, मुझे तो आज ही यह ब्लाग मिला और पढ़कर खुशी हुई कि आप साइबर दुनिया में आ गयीं। आप नवगीतों के वरिष्ठ रचनाकारों में से हैं, एक ब्लाग नवगीतों को जरूर बनाएँ फिर हम उसको नवगीत की पाठशाला से जोड़ देंगे। यह लिंक भी देखियेगा। http://www.navgeetkipathshala.blogspot.com/ मुझे याद रखने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मन जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा. सम्वाद बनाए रखें।
आप एक बहन, एक मित्र की भांति सदा मेरी स्मृति में रहती है।
❖ सदा जी
ReplyDelete❖ अमृता तन्मय जी़
❖ समीर लाल जी
❖ परशुराम राय जी
.......आप सभी को हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
आपने मन की बात कह दी ,सच में अक्सर ही ऐसा लगने लगता है.
ReplyDeleteधन्यवाद एवं सुन्दर हिंदी-सृजनात्मकता के लिए भी आभार..
ReplyDeletekaisa hoga suraj chanda kaisa khilta hoga.....pardesh me aakar ham anjaan rahte hain,subah kab hoti hai,shaam kab,pataa nahin chalta !
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी एवं सटीक भावों की प्रस्तुती है यह कविता.
ReplyDeleteप्रतिभा सक्सेना जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
अरविंद पाण्डेय जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें। हार्दिक धन्यवाद!
संतोष त्रिवेदी जी,
ReplyDeleteआपने सही कहा...मन के भीतर विचार चलते हैं लेकिन जीवन व्यस्त रहता है।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें। हार्दिक धन्यवाद!
विजय माथुर जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! सम्वाद बनाए रखें।
बचपन के साथी सब छूटे, छूट गये सहपाठी भी
ReplyDeleteबंद क़िताबों में छूटी जो, सतरें बहुत रुलाती हैं।
...बहुत अच्छा.
उदगार जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! सम्वाद बनाए रखें।
काश ! हमारे भी पर होते, जब चाहे हम उड़ पाते
ReplyDeleteरोज़ हमारी ये इच्छायें हमको बहुत सताती हैं।
sabke dil ki baat kah dali aapne ,maja aa gaya padhkar .ati sundar .
सार्थक रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
परदेस में रहने वाले के मन के भावों की प्रस्तुती है यह कविता...
आपने मेरे मन की बात कही है इन पंक्तियों में !!
बहुत बहुत धन्यवाद.....मुझे याद रखने के लिये ।
यह लिंक भी देखियेगा.....
my daughter's blog-http://limitlesky.blogspot.com
my punjabi blog- http://punjabivehda.wordpress.com
ज्योति सिंह जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
डॉ. हरदीप संधु जी,
ReplyDeleteआप एक बहन, एक मित्र की भांति सदा मेरी स्मृति में रहती है।
मेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा... सम्वाद बनाए रखें।
Beautiful!!
ReplyDeleteਸੰਦੀਪ ਸੀਤਲ ਚੌਹਾਨ ਜੀ,
ReplyDeleteਹੌਸਲਾ ਅਫਜਾਈ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ....
ਆਪਣੇ ਬਲੋਗ ਪਜ ਦੇਖ ਕੇ ਚੰਗਾ ਲਾਗਿਯਾ.
your always welcome.
होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
ReplyDeleteसंतोष कुमार झा,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा... सम्वाद बनाए रखें....
मेरे सभी ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है!
बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ की शायरी है...मुबारकबाद.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
ReplyDeleteरंग के त्यौहार में
सभी रंगों की हो भरमार
ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।
आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो।
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं।
हार्दिक धन्यवाद!
Dinesh pareek ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem.
Hearty thanks.
वाह...... ग़ज़ल को पढ़कर कानों में जगजीत की आवाज़ खनकने लगी, "हम तो हैं परदेश में.... देश में निकला होगा चाँद."
ReplyDeleteआदरणीय शरदजी,
यदि आदेश हो तो आंच में इस ग़ज़ल पर बात की जाए.... ?
करण समस्तीपुरी जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं।
हार्दिक धन्यवाद!
आपने लिखा है कि-‘यदि आदेश हो तो आंच में इस ग़ज़ल पर बात की जाए.... ?’
कृपया ‘आंच’ के संबंध में जानकारी देने का कष्ट करें।
agar beete din achchhe hon to unki yaad bahut taklif deti hai, visheshkar pardesh mein. Bahut sundar aur man ko chhu jane wali rachna.
ReplyDeletemera dil kholkar rakh diya aapne...bahut achi lagi ye gazal..bahut2 badhai..
ReplyDeleteDr.Bhawna ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem.
Hearty thanks.
vastv me bhut yad aate hain.
ReplyDeletewah dil ko choo gaya
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