श्रीमती अल्पना वर्मा जी के ब्लॉग 'व्योम के पार" पर आपकी टिपण्णी ने आपके ब्लॉग तक का रास्ता दिखाया और पाया की एक अभूतपूर्व शख्सियत से रु-बा-रु हूँ...आपका हिंदी प्रेम, अभिव्यक्ति और छंदात्मक रचनाएँ, कम शब्दों मैं सारगर्भित सन्देश देती सी प्रतीत हुई हैं...
निःसंदेह मनोभओवों को कविता के माध्यम से कितने बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है ये आपके ब्लॉग पर उल्लिखित कविताओं को पढ़कर कोई भी जान सकता है...
दीपक शुक्ला जी, हार्दिक धन्यवाद!मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.आपकी काव्य पंक्तियां भी बहुत सुन्दर हैं। आभार एवं बधाई।
डॉ.शरद जी आपने अद्भुत और कभी न भूलने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं |मैं अपना एक शेर आपको भेंट कर रहा हूँ |तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल .हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता |
शरद जी सही कहा आपने। वसन्त का एक सटीक चित्र सरसों इसी समय फूलती है.............
एक निवेदन- मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
हे प्रभु !मेरी प्रार्थना में गरीबों को अनदेखा करने वाली आँखों की पुतलियाँ फट जायें...... घूंस लेने वाले हाथ कोहनी तक गल जायें........... असहायों की चीख न सुनने वाले कानो के परदे दिमाग तक सड़ जायें ....... किसी मजबूर के सामने पत्थर के माफिक अपने में सक्षम -समर्थ साहब और सरकार का जो भ्रम पाल बैठे हैं उनकी औलादें मर जायें ....... हे प्रभु ! मेरी प्रार्थना में तेरे विश्वास पर तुझसे न्याय की प्रतीक्षा में जो आज भी भूंखे-नंगे बैठे हैं तू उनके लिए जगह छोड़ आब उन्हें भी मौका दे एक बार वे भी भगवान् बन जायें......... You create a nice poem Miss Sharad..thanks.. Your most welcome to my blog http:/ atulkushwaha-resources.blogspot.com atulkavitagajal.blogspot.com
फागुन में यूं ही अचानक बसंत पढऩे को मिल गया, आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा। सब कुछ वैसा ही है, हां अब आसानी रहेगी आपकी परछाईं के साथ चलने में, साथ ही आपके शब्दों की जमापूंजी को कागज पर खर्चने में भी अगर आपकी सहमति मिल जाये तो?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी . आपने बहुत बड़ा काम किया है साहित्य, समाज, एवं इतिहास के क्षेत्र में. आपकी जितनी भी तारीफ़ की जाय काम है. मेरी बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
अबनीश सिंह चौहान जी, मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है! मेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।
Aadarniya Dr(miss)Sharad Singh ji "ये भी कोई बात हुई ,कुछ कही कुछ ना कही, आपने तो कर ही दिया है कमाल, एक रुमाल से ही कर दिया है सबको बेहाल."
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत प्रसन्नता मिली. आपकी विलक्षण प्रतिभा का मै कायल हूँ. आप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा 'पर आये इसके लिए बहुत बहुत आभारी हूँ आपका.कृपया,अपने बहुमूल्य विचारों से मेरा मनोबल बढ़ाते रहें .
डॉ शरद सिंह जी को नमस्कार ! मेरे ख्याल से "पुआल " उत्तर भारत में धान(चावल ) के डंठलो को कहा जाता हूँ . पुआल शब्द का प्रयोग अनेक साहित्यकारों ने भी इसी सन्दर्भ में किया है , जैसे - .श्रद्धेय मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी कहानी "पूस की रात" कविता सुन्दर भाव लिए है ! मैं भी सागर से हूँ, अगर हो सके तो आपसे मिलना चाहूँगा . ९०३९४३८७८१
janbujh kar chhoda gaya rumaal...
ReplyDeleteApka minute observation dil ko chhu gaya...
Indian Sushant
सुन्दर, बौराया बसन्त।
ReplyDeletekuch sihrate se ehsaas ... mann basanti ho utha
ReplyDeleteबसन्त के मनभावन संकेतक.
ReplyDeleteबसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteसुशान्त जैन जी, हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रवीण पाण्डेय जी।
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी, हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल जी, आभारी हूं...बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteअमरजीत जी, मेरे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है! आपको भी बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteवाह ..बहुत ही सुन्दर भाव प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकेत बसंत का| धन्यवाद|
ReplyDeleteबसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई|
जानबूझ कर छोड़ा गया रुमाल ......बसंत का अच्छा संकेत , बधाई
ReplyDeleteसंकेत बसंत का..बहुत सुन्दर .अच्छा लगा....
ReplyDeleteनमस्कार..
ReplyDeleteश्रीमती अल्पना वर्मा जी के ब्लॉग 'व्योम के पार" पर आपकी टिपण्णी ने आपके ब्लॉग तक का रास्ता दिखाया और पाया की एक अभूतपूर्व शख्सियत से रु-बा-रु हूँ...आपका हिंदी प्रेम, अभिव्यक्ति और छंदात्मक रचनाएँ, कम शब्दों मैं सारगर्भित सन्देश देती सी प्रतीत हुई हैं...
निःसंदेह मनोभओवों को कविता के माध्यम से कितने बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है ये आपके ब्लॉग पर उल्लिखित कविताओं को पढ़कर कोई भी जान सकता है...
आज से मैं आपके ब्लॉग का फोल्लोवेर हुआ...
दीपक...
नमस्कार..
ReplyDeleteकितने ही संकेत छुपे हैं...
प्रकृति जो लाये ऋतू वसंत...
पीली सरसों संग नव कोपल...
हर्षाती मन की उमंग...
सुन्दर भाव, सुन्दर कविता...
दीपक...
बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteMark Rai ji, welcome in my blog.
ReplyDeleteज़ाकिर अली ‘रजनीश’जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.
सुनील कुमार जी, रचना को पसन्द किया आभारी हूं।
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी, आभार एवं हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteदीपक शुक्ला जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.आपकी काव्य पंक्तियां भी बहुत सुन्दर हैं। आभार एवं बधाई।
दीपक सैनी जी, मेरी रचना को पसन्द करने हेतु आभार।
ReplyDeleteKya baat hai !
ReplyDeleteJust beautiful !!
Patali-The-Village.....हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteअमिताभ मीत जी, हार्दिक धन्यवाद! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
ReplyDeleteसदा जी, हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteरुमाल........अद्भुत बासन्ती संकेत
ReplyDeleteकम शब्दों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ढेरों शुभ कामनाएं
हार्दिक धन्यवाद sagebob! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
ReplyDeletebahut sunder...aisaa pahli baar padha../
ReplyDeletemere blog par bhi aaye
डॉ.शरद जी आपने अद्भुत और कभी न भूलने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं |मैं अपना एक शेर आपको भेंट कर रहा हूँ |तुम्हारे हर हुनर के हो गए हम इस तरह कायल .हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता |
ReplyDeleteबबन पाण्डेय जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें। आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.
जयकृष्ण राय तुषार जी,
ReplyDeleteआपके अपनत्व ने मुझे भावविभोर कर दिया ..... इस उत्साहवर्द्धन के लिए आभारी हूं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद ! सम्वाद बनाए रखें।
बेहतरीन...वाकई यही है बसंत!!
ReplyDeleteशरद जी
ReplyDeleteसही कहा आपने।
वसन्त का एक सटीक चित्र
सरसों इसी समय फूलती है.............
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
pyari si bahut sunder.
ReplyDeletesubtle meaning containing nice lines...
ReplyDeleteपीली सरसों,पीली पुआल और छूटा रुमाल ... बसंत का पूरा एहसास कुछ शब्दों में !
ReplyDeleteबहुत अच्छा संकेत है बसंत का ...
ReplyDeletepili sarson ki yaad mujhe bhi aa hi gayi......aapne yaad dila diya delhi me rahte hue ise dekhe saalon ho gaye...ab gaanw bhaagna padega.......
ReplyDeleteसमीर लाल जी,
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद...
वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर ने कहा,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद>
पर्यावरण के प्रति आपका समर्पण सभी को प्रेरणा दे...यही कामना है।
डॉ.अनवर जमाल जी़,
ReplyDeleteआभार एवं हार्दिक धन्यवाद....
मृदुला प्रधान जी,
ReplyDeleteआपका आना सुखद लगा...धन्यवाद....
अमित-निवेदिता जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार....
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
केवल राम जी़,
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत धन्यवाद !
मार्क राय जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
गांव, खेत और प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा नई ऊर्जा देते हैं...इसलिए ख़याल अच्छा है...गांव हो आइए।
वसंत की बेला पर सुन्दर पोस्ट...बधाई.
ReplyDeleteकभी 'पाखी की दुनिया' में भी तो आइये !!
kya baat hai ,
ReplyDeleteantim pankti ne to dil me jagah bana li.
मानव मेहता जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
प्रिय अक्षिता (पाखी),
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर फिर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद! इसी तरह मिलती रहना। मैं भी 'पाखी की दुनिया' में पहुंच रही हूं।
रवि राजभार जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर फिर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह संवाद बनाए रखें।
very nice poem and photo also.........................a good poem on vasant
ReplyDeleteमेरी प्रार्थना में
ReplyDeleteहे प्रभु !मेरी प्रार्थना में
गरीबों को अनदेखा करने वाली
आँखों की पुतलियाँ फट जायें......
घूंस लेने वाले हाथ
कोहनी तक गल जायें...........
असहायों की चीख न सुनने वाले
कानो के परदे
दिमाग तक सड़ जायें .......
किसी मजबूर के सामने
पत्थर के माफिक
अपने में सक्षम -समर्थ
साहब और सरकार का
जो भ्रम पाल बैठे हैं
उनकी औलादें मर जायें .......
हे प्रभु ! मेरी प्रार्थना में
तेरे विश्वास पर
तुझसे न्याय की प्रतीक्षा में
जो आज भी
भूंखे-नंगे बैठे हैं
तू उनके लिए जगह छोड़
आब उन्हें भी मौका दे
एक बार वे भी भगवान् बन जायें.........
You create a nice poem Miss Sharad..thanks..
Your most welcome to my blog http:/
atulkushwaha-resources.blogspot.com
atulkavitagajal.blogspot.com
ममता त्रिपाठी जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सम्वाद बनाए रखें।
अतुल कुशवाहा जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है।
‘मेरी प्रार्थना में ’ ....अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
jaan bujh kar chhoda gaya rumaal...:)
ReplyDeleteiss ek vakya ne pure vaktavya me char chand laga diya..:D
bahut khub!!
kabhi hamare blog pe aayen..
मुकेश कुमार सिन्हा जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक आभार...
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद...
सम्वाद बनाए रखें।
संकेत भी वासंती है.
ReplyDeleteaayo naval basant. sundar prastuti..
ReplyDeleteशरद मेम !
ReplyDeleteनमस्कार !
मज़ा आ गया ,आप कि ये खूब सूरत पंक्तिया पढ़ !
साधुवाद
इतने कम शब्दों में पूरा का पूरा बसंत झूम कर बुला लिया !
ReplyDeleteसच कहें तो यही कविता है !
आभार !
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.सम्वाद बनाए रखें।
हर्ष जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद.
सम्वाद बनाए रखें।
सुनील गज्जाणी जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आभारी हूं।
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.सम्वाद बनाए रखें।
ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
आदरणीय शरद जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
फागुन में यूं ही अचानक बसंत पढऩे को मिल गया, आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा। सब कुछ वैसा ही है, हां अब आसानी रहेगी आपकी परछाईं के साथ चलने में, साथ ही आपके शब्दों की जमापूंजी को कागज पर खर्चने में भी अगर आपकी सहमति मिल जाये तो?
धन्यवाद।
रविकुमार बाबुल ,
फीचर-सम्पादक
बीपीएन टाइम्स
ग्वालियर
-----------------
मोबाइल नंबर : 09302650741
रविकुमार बाबुल जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.सम्वाद बनाए रखें।
bahot sundar abhivyakti.....wah
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सन्देश! आपको भी बसंत की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपको भी बसंत पंचमी की बधाई।
ReplyDeleteसुमित ‘सत्य’ जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद...
आपके विचारों का मेरे ब्लॉग्स पर सदा स्वागत है।
मिथिलेश दुबे जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद.
सम्वाद बनाए रखें।
अरविन्द पाण्डेय जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ...।
आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा....सम्वाद बनाए रखें।
शिव शंकर जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से अनुसरण करने हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है!
बहुत ही मोहक संकेत बताए आपने। आभार।
ReplyDelete---------
शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी,
ReplyDeleteबहुत -बहुत ..शुक्रिया.
आदरणीया डॉ.शरद जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
पीली सरसों
पीला पुआल
जान बूझ कर छोड़ा गया रूमाल
अच्छे बिंब के साथ संक्षिप्त रचना के लिए बधाई !
समय निकाल कर आने का प्रयास करें …
♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
बसंत ॠतु की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं !
पीली सरसों
ReplyDeleteपीला पुआल
जान बूझ कर छोड़ा गया रूमाल
अत्यंत सुंदर बिंबों से चंद शब्दों मे बसंत का एहसास करा दिया इस रचना ने, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
परदेस की बेबसी को सुन्दरता से व्यक्त किया है, और पंक्ितयां गेय बन पड़ी हैं।
ReplyDeleteकृष्ण कयात जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से अनुसरण करने हार्दिक धन्यवाद!
आपका स्वागत है!
ताऊ रामपुरिया जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
राजेय शा जी,
ReplyDeleteमेरे इस ब्लॉग में आपका स्वागत है!
मेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
गागर में सागर और "जान बूझकर छोड़ा गया रुमाल" अद्भुत
ReplyDeleteराकेश कौशिक जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।
कुशवंश जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आपका स्वागत है!
आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी . आपने बहुत बड़ा काम किया है साहित्य, समाज, एवं इतिहास के क्षेत्र में. आपकी जितनी भी तारीफ़ की जाय काम है. मेरी बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
ReplyDeleteअबनीश सिंह चौहान जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आपका स्वागत है!
मेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं।
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।
Aadarniya Dr(miss)Sharad Singh ji
ReplyDelete"ये भी कोई बात हुई ,कुछ कही कुछ ना कही,
आपने तो कर ही दिया है कमाल,
एक रुमाल से ही कर दिया है सबको बेहाल."
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत प्रसन्नता मिली.
आपकी विलक्षण प्रतिभा का मै कायल हूँ.
आप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा 'पर आये इसके
लिए बहुत बहुत आभारी हूँ आपका.कृपया,अपने बहुमूल्य
विचारों से मेरा मनोबल बढ़ाते रहें .
बसंत के आगमन पर अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteदिनेशराय द्विवेदी जी,
ReplyDeleteआपका स्वागत है। मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आपका आभार...
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteआपका स्वागत है!
मेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं।
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।
जगदीश बाली जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
मेरे ब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है!
जानबूझ कर छोड़ा गया रुमाल ...
ReplyDeleteबसंत का अच्छा संकेत , बधाई
अमरेन्द्र ‘अमर’ जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
आदरणीया डॉ.शरद जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बसंत का पूरा एहसास कुछ शब्दों में !
बसंत ॠतु की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई सेंचुरी पूरी हो गई
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी,
ReplyDeleteशुभकामनाओं और प्रोत्साहन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
आपका सदा स्वागत है।
andaaj bahut khoobsurat hai bilkul basanti mausam ki hi tarah ,aabhari hoon aap aai .badhai .
ReplyDeleteज्योति सिंह जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
आपका सदा स्वागत है...
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
Sharad ji, itne km shabdon me itni baatein kaise kah jaati hain aap...vilakshan kala hai aur aap sachmuch kalam ki jaadugar...
ReplyDeleteaandaze bayan aapka bahut pasand aaya...man ko bahut bhaaya...
likhte rahiye...
विजय रंजन जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
....सम्वाद क़ायम रखें।
बहुत खुब।शरद जी आप गागर में सागर भर देती हैं।
ReplyDeletehi
ReplyDeleteडॉ शरद सिंह जी को नमस्कार !
ReplyDeleteमेरे ख्याल से "पुआल " उत्तर भारत में धान(चावल ) के डंठलो को कहा जाता हूँ . पुआल शब्द का प्रयोग अनेक साहित्यकारों ने भी इसी सन्दर्भ में किया है , जैसे - .श्रद्धेय मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी कहानी "पूस की रात"
कविता सुन्दर भाव लिए है !
मैं भी सागर से हूँ, अगर हो सके तो आपसे मिलना चाहूँगा .
९०३९४३८७८१