यूं उम्र भर तो मिरे पास न रुकोगे तुम
सलीब ग़म का रखा है मिरे जो कांधे पर
चलोगे चार क़दम और फिर थकोगे तुम
उठा के सिर को कभीभी नहीं जिया तुमने
हरेक शख़्स के आगे में जा झुकोगे तुम
- डॉ शरद सिंह
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